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________________ 418 / Jijnasa 51. भारत में महिला श्रमिक : दशा एवं दिशा मन्जु कुमारी जैन उपभोक्तावादी सास्कृतिक दौर में एक ओर यदि स्त्री की स्थिति मजबूत हुई है तो दूसरी ओर वह कमजोर भी हुई है। यदि एक ओर उसे धन कमाने के नये अवसर मिले, तो दूसरी ओर पारम्परिक उद्योग के बन्द होने पर पुरूषों से पहले निकाला भी गया। एक ओर वह सीधे बाजार से बातचीत कर रही है विज्ञापन की दुनिया में मॉडल के रूप में उभरी है सेक्स श्रमिक के रूप में अपनी पहचान मांगती है और उसको यह पहचान बहुतेरे देशों में मिली भी है, तो दूसरी ओर व्यवस्था उसे जिंस की भांति खरीदने-बेचने में पीछे नहीं रहती। __ "कोई भी सामाजिक, आर्थिक या औद्योगिक व्यवस्था जो समाज के लगभग समान संख्या वाले महिला की क्षमताओं, गुणों को नजर अंदाज करता है, तो ये उस देश में उपलब्ध मानव संसाधन या मानव सामर्थ्य पर्याप्त उपयोग नहीं माना जाएगा। साथ ही यह समान अवसरों को नकारने वाला अपराध माना जाएगा, जो आगे चलकर ऐसी स्थिति का निर्माण करेगी जिससे शोषण एवं विषमता चिरस्थायी हो जाएगी। इसलिए इनके लिए रोजगार समान अवसर, समान कार्य के लिए समान वेतन, हुनर प्राप्ति एवं निरंतर वृद्धि के अवसरों में समानता, समान सम्मान परिवेदना निवारण के अवसरों में समानता, सम्पत्ति में समानता, मलकियत में समानता का अधिकार सुनिश्चित किया जाना चाहिए।" -द्वितीय श्रम आयोग, 2002 भारतीय समाज एवं पुरूष ने महिला के साथ बहुत ही उपहास किया है। देवी, दुर्गा, काली, सरस्वती, लक्ष्मी के रूपों में स्त्री शक्ति, विद्या और लक्ष्मी की अधिष्ठान है। स्त्री के गुणगान में पुराण सप्तशतियाँ रची गई, किन्तु व्यवहारिक धरातल पर स्त्री का स्थान समाज में निम्नस्तरीय ही रहा। वह अन्नपूर्णा थी किन्तु स्वयं उसे भरपेट भोजन प्राप्त नहीं था। पहनना- ओढना, सजना-संवरना सब कुछ पुरूषों के लिए। किन्तु अब समय बदल रहा है महिला पूजा की वस्तु या भोग्या की परम्परा को तोड़कर पुरूषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। वैश्वीकरण के दौर ने बढ़ती जनसंख्या, घटते रोजगार ने भारतीय परिवारों के आर्थिक जीवन को झकझोर दिया। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए महिला अपनी प्रतिभा एवं कार्यकुशलता के साथ तैयार है। राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्वों (अनुच्छेद 39) में उपबन्धित है कि राज्य अपनी नीति का विशिष्टतया, इस प्रकार संचालन करेगा कि सुनिश्चित रूप से पुरूष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो, पुरूषों एवं स्त्रियों दोनों का समान कार्य के लिए समान वेतन हो तथा इन कर्मकारों के स्वास्थ्य और शक्ति का तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरूपयोग न हो एवं आर्थिक
SR No.022813
Book TitleJignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibha Upadhyaya and Others
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year2011
Total Pages236
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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