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________________ 158 / Jijnasa 21. वैदिक वाङ्गमय : ऐतिहासिक दृष्टि एवं व्याख्या का संकट राजेश मिश्र व्याख्या पद्धति के विषय में महाकवि भारवि ने बड़े अफसोस के साथ कहा थाः धियात्मनस्तावदचारुनाचरेत् जनस्तु यद्वेद स तद्वदिष्यति। जनावनायोद्यमिनं जनार्दनं जगत्क्षये जीव्य शिवं शिवं वदन्।। अर्थात् दुनिया को सच्चे अर्थ से कोई मतलब थोड़े ही है, जो जी में आया कह दिया। दुनिया को नाश करने वाले देवता का नाम रख दिया शिव यानि कल्याण और पालन करने वाले देवता का नाम दे दिया, जनार्दन यानि जन का विनाश करने वाला। वैदिक वाङ्गमय की व्याख्या और उसकी मूल दृष्टि के सन्दर्भ में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। वैदिक साहित्य को आर्षकाव्य कहा गया है और आर्ष की परिभाषा की गई है: यदर्थवद्धर्मपदोपसंहितं त्रिधातुसंक्लेशनिवर्हण वचः । भवे भवेच्छान्त्यनुशंसदर्शकं तद्वत् क्रमार्ष विपरीतमन्यथा।। अर्थात् जो अर्थवत् हो, धर्मयुक्त हो, त्रिधातुदोष को नष्ट करने वाला हो और रोज की बनती-बिगड़ती रहने वाली दुनिया के पचड़ों और उसमें रमने की इच्छा को समाप्त करके शान्ति पाने में साधक हो, वही सच्चे अर्थों में आर्ष है, बाकी सारी बातें अनार्ष हैं। और ऋग्वेद की मान्यता देखिए: समानोमन्त्र समितिः समानी समानं मनः सहचित्तमेषाम् । समानं मन्त्रमाभि मन्त्रयेवः समानेन वो हविषा जुहोमि।। इस प्रकार वेद न तो स्थूल बैखरी रूप शब्दमात्र है और न स्वयंभू ज्ञानमात्र। वे ज्ञान-विज्ञान को व्यक्त करने वाली ग्रन्थराशि हैं जो रहस्यात्मक अर्थ में नित्य, अनादि, अपौरुषेय या ईश्वरकृत स्वीकार किये जा सकते हैं लेकिन उपपत्तितः अलौकिक प्रेरणा और अन्तर्ज्ञान से अनुप्राणित मनीषियों की रचनायें हैं, जो एक सुदीर्घ ज्ञान-साधना को प्रकट करती है। इनकी व्याख्या के लिये यद्यपि प्राचीन व्याख्या परम्परा ने स्वयं वेदों के साक्ष्यों को जो ब्राह्मणों और निरुक्तों में शेष है, वेदांग, इतिहास-पुराण एवं मीमांसाशास्त्र, मध्यकालीन व्याख्या परम्परा विशेषतया यास्क और सायण, आधुनिक मनीषियों में दयानन्द, श्रीअरविन्द, अनिर्वाण, कुमारस्वामी आदि के व्याख्या संकेत तथा पाश्चात्य भाषा-शास्त्रियों वाकरनागल, ब्रुगमान और मैक्डॉनेल का वैदिक व्याकरण का अनुव्याख्यान, रॉथ और
SR No.022812
Book TitleJignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibha Upadhyaya and Others
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year2011
Total Pages272
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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