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________________ उपस्थापना 15 पिग सुधि पावत वन में पैसिउ पेलि, छाड़त राज डगरिया भयउ अकेलि, बालम ।।२।। रहस्य भावनात्मक इन प्रवृत्तियों के अतिरिक्त समग्र जैन साहित्य में, विशेषरूप से हिन्दी जैन साहित्य में और भी प्रवृत्तियां सहज रूप में देखी जा सकती हैं । वहां भावनात्मक और साधनात्मक दोनों प्रकार के रहस्यवाद उपलब्ध होते हैं । मोह-राग द्वेष आदि को दूर करने के लिए सद्गुरु और सत्संग की आवश्यकता तथा मुक्ति प्राप्त करने के लिए सम्यग्दर्शन-ज्ञान और चरित्र की समन्वित साधना की अभिव्यक्ति हिन्दी जैन रहस्यवादी कवियों की लेखनी से बडी ही सुन्दर, सरल भाषा में प्रस्फुटित हुई है । इस दृष्टि से सकलकीर्ति का आराधना प्रतिबोधसार, जिनदास का चेतनगीत, जगतराम का आगमविलास, भवानीदास का 'चेतन सुमति सज्झाय' भगवतीदास का योगीरासा, रूपचंद का परमार्थगीत' द्यानतराय का द्यानतविलास आनन्दघन का आनंदवचन बहोत्तरी, भूधरदास का भूधरविलास आदि ग्रंथ विशेष उल्लेखनीय हैं। आध्यात्मिक साधना की चरम परिणति रहस्य की उपलब्धि है। इस उपलब्धि के मार्गों में साधक एक मत नहीं । इसकी प्राप्ति में साधकों ने शुभ-अशुभ अथवा कुशल-अकुशल कर्मो का विवेक खो दिया । बौद्ध-धर्म के सहजयान, मंत्रयान, तंत्रयान वज्रयान आदि इसी साधना के वीभत्स रूप हैं । वैदिक साधनाओं में भी इस रूप के दर्शन स्पष्ट दिखाई देते हैं । यद्यपि जैनधर्म भी इसे अछूता नहीं रहा परन्तु यह सौभाग्य की बात है कि उसमें श्रद्धा और भक्ति का अतिरेक तो अवश्य हुआ, विभिन्न मंत्रों और सिद्धियों का आविष्कार भी हुआ किन्तु उन १. वही, पृ. २२८ ।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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