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________________ रहस्यभावना के बाधक तत्त्व 239 बनारसीदास ने भी यही कहा है कि अम्बर को मैला कर देने वाला योग-आडम्बर किया, अंग विभूति लगायी, मृगछाला ली और घर परिवार को छोड़कर बनवासी हो गये पर स्वर का विवेक जाग्रत नहीं हुआ।१२० भैया भगवतीदास ने बाह्यक्रियाओं को ही सब कुछ मानने वालों से प्रश्न किये कि यदि मात्र जलस्नान से मुक्ति मिलती हो तो जल में रहने वाली मछली सबसे पहले मुक्त होती, दुग्धपान से मुक्ति होती तो बालक सर्वप्रथम मुक्त होगा, अंग में विभूति लगाने से मुक्ति होती है तो गधों को भी मुक्ति मिलेगी, मात्र राम कहने से मुक्ति हो तो शुक भी मुक्त होगा, ध्यान से मुक्ति हो तो बस मुक्त होगा, शिर मुड़ाने से मुक्ति हो तो भेड़ भी तिर जायेगी, मात्र वस्त्र छोड़ने से मुक्त कोई होता हो तो पशु मुक्त होंगे, आकाश गमन करने से मुक्ति प्राप्त हो तो पक्षियों को भी मोक्ष मिलेगा, पवन के खाने से यदि मोक्ष प्राप्त होता तो व्याल भी मुक्त हो जायेंगे। यह सब संसार की विचित्र रीति है । सच तो यह है कि तत्त्वज्ञान के बिना मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता। मिथ्याभ्रम से देह के पवित्र हो जाने से आत्मा को पवित्र मान लेते हैं, कुलाचार को ही जैनधर्म कह देते हैं, पुण्य-पाप कर्म के चक्कर में अनाम के स्थान पर कंदमूल खा लेते है, मूड़ को मुड़ाकर, देह को जलाकर ही धर्म मानते हैं। शास्त्र का प्रवचन करते हुए भी शास्त्र को नहीं समझते। नरदेह पाने से पंडित कहलाने से तीर्थ स्थान करने से, द्रव्यार्जन करने से छत्रधारी होने से, केश के मुड़ाने से और भेष के धारण करने से क्या तात्पर्य, यदि आत्म प्रकाशात्मक ज्ञान नहीं हुआ।२३ ज्ञानार्जन किये बिना ही अनेक प्रकार के साधु विविध साधना करते हुए दिखाई देते हैं। उनमें कुछ कनफटा, जटाधारी, भस्म लपेटे, चेरियों से घिरे धूम-पायी साधु हैं जो कामवासना से पीड़ित और विषयभोगों में लीन हैं -
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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