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________________ 113 मध्यकालीन हिन्दी जैन काव्य प्रवृत्तियां आख्यान (सं. १६५१), परिमल्ल का श्रीपाल चरित्र (सं. १६५१), पामे का भरतभुजबलि चरित्र (सं. १६१६), ज्ञानकीर्ति का यशोधर चरित्र (सं. १६५८), पार्श्वचन्द्र सूरि का राजचन्द्र प्रवहण (सं. १६६१), कुमुदचन्द्र का भरत बाहुबली छन्द (सं. १६७०), नन्दलाल का सुदर्शन चरित (सं. १६६३), बनवारी लाल का भविष्यदत्त चरित्र (सं. १६६६), भगवतीदास का लघुसीता सतु (सं. १६८४), कल्याण कीर्तिमुनि का चारुदत्त प्रबन्ध (सं. १६१२), लालचन्द्र का पद्मिनी चरित्र (सं. १७०७) रामचन्द्र का सीता चरित्र (सं. १७१३), जोधराज गोदीका का प्रीतंकर चरित्र (सं. १७२१, जिनहर्ष का श्रेणिक चरित्र (सं. १७२४), विश्वभूषण का पार्श्वनाथ चरित्र (सं. १७३८), किशनसिंह के भद्रबाहु चरित्र (सं. १७८३) और यशोधर चरित (सं. १७८१), लोहट का यशोधर चरित्र (सं. १७२१), अजयराज का यशोधर चरित्र (सं. १७२१), अजयराज पाटणी का नेमिनाथ चरित्र (सं. १७९३), दौलत राम कासलीवाल का जीवन्धर चरित्र (सं. १८०५), भारमल का चारुदत्त चरित्र (सं. १८१३), शुभचन्द्रदेव का श्रेणिक चरित्र (सं. १८२४), नाथमल मिल्लाका नागकुमार चरित्र (सं. १८१०), चेतन विजय का सीता चरित्र और जम्बूचरित्र (सं. १८५३), पाण्डे लालचन्द का वरांगचरित्र (सं. १८२७), हीरालाल का चन्द्रप्रभ चरित्र, टेकचन्द का श्रेणिक चरित्र (सं. १८८३), और ब्रह्म जयसागर का सीताहरण (सं. १८३५) । इन चरित काव्यों के तीर्थंकरों युवा महापुरुषों के चरित का चित्रण कर मानवीय भावनाओं का बड़ी सुगमता पूर्वक चित्रण किया गया है। यद्यपि यहां काव्य की अपेक्षा चारित्रांकन अधिक हुआ है परन्तु चरित्र प्रस्तुत करने का ढंग और उसका प्रवाह प्रभावक है।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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