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________________ जैनरत्न व्याख्यानवाचस्पति जैनाचार्य श्रीमद् विजयलब्धिसूरीश्वरजी कृत श्री पंच परमेष्ठी पूजा ॥दोहा।। शामक काम कषायना, दामक इंद्रिय मूल ॥ गामक शिवसुख सद्मना, वामक भवभ्रम शूल ॥१॥ __ सिद्धार्थ नृपकुल तिलक, वर्द्धमान भगवान ।। तस पदपंकज धूर नमी, भारती नमुं भूरिमान ॥२॥ मुनि शिरशेखर सूरिवरा, विजयकमल गुणखाण ॥ प्रशम सुधारसैकनिधि नमुं, संप्रति शासनभाण ॥३॥ परमेष्ठि-स्तुतिशाण पर, घर्षित आतमरुप परमेष्ठि-पदवो वरे, अनुपम एज स्वरुप ॥४॥ प्रथम पदे अरिहंत जी, करे करमनी हाण ॥ बीजा पदमां सिद्ध वर, ज्ञान चतुष्टय खाण ॥५॥ शासन दिनकर सूरिवरा, सकल सृष्टि श्रृङ्गार ॥ गुणखाणी बीजे पदे, ज्ञान तणा भंडार ॥६॥ वाचकवर चोथे पदे, ज्ञान सुधा वर दान ॥ आपे स्वपर शिष्यने, करे उपकार अमान ॥७॥ ___ मुनिजन मानो पांचमे, सारे आतम काज || पार करे भवि वर्गने, भव-जलधिमां जहाज ॥८॥ ए पंचपद परमेष्ठिनो, महिमा महीतल मांय ॥ तीर्थंकर गणधर कहे, नहीं तस पार पमाय ॥९॥ तस गुण गावा बाल हु, धरु हृदयमा आश । ते मुज धाष्टर्य उवेखीने, न करशो कोई हास ॥१०॥ यतो गेय जन कही गया, उद्यम शत्त्क्यनुसार ।। गुण गावा परमेष्टिना, थाजो सर्व तैयार ॥११॥ अथ प्रथम अरिहंत पद परमेष्ठि पूजा (465
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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