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________________ a पाँचवाँ सगे। [ ३७ और परसेवी होता है तथा ऐसा होता है जो कोड़ोंसे पीटा जाता है और जंजीरोंसे जकड़ा जाता है। फिर भी हमेशा नीच २ कर्मोको ही करता है । शीलको भंग करनेसे जिन्होंने दुःख पाया है ऐसे सद्रतनिष्ठा मंगिकाके सिवाय भवघोष आदिकी स्त्रियोंके बहुतसे उदाहरण मिलते हैं। इनको आदि लेकर दुःखोंकी सन्तानके वितानसे जिनका मन डरता है उन सज्जनोंको प्रयत्नके साथ शीलवतका पालन खूब करना चाहिए । यह शील मनुष्यका भूषण है, संयमका साधन है, इसके विना और २ कारणोंके होते हुए भी जीवको सुख नहीं मिल सकता-उनकी आपदा नहीं टल सकती । शीलके विना अच्छे कुल और रूप सम्पत्तिकी प्राप्ति नहीं होती, तथा सुन्दर पुत्र आदिकी प्राप्ति भी नहीं होती । इस प्रकार श्रीवर्द्धन मुनिके मुखचन्द्रसे झरे हुए धर्मामृतका पानकर प्रभंजन महाराज और उनके पुत्र सरल महाराज दोनों ही दिगम्बर हो गये और घोर तपस्या करने लगे। बाद, वसुधातलपर विहार करते हुए ये शान्तचित्त महायोगीश्वर इस उज्जैनी नगरीमें आये हैं। इस प्रकार श्रीवर्द्धन मुनिराजने पूर्णभद्र राजाके दो प्रश्नोंका उत्तर देकर तीसरे प्रश्न (मेरा इनके ऊपर भारी स्नेह हो रहा है इसका कारण क्या है?) का उत्तर देना प्रारंम्भ किया। भरतक्षेत्रमें वसंततिलकापुर नगर है। वहाँके राजा वसंततिलक थे, उनकी रानी वसंततिलका थी, जो कि सती थीं। उसी पुरमें एक कोदण्ड नामक ब्राह्मण था, उनकी वल्लभाका नाम कमला था तथा उनके श्री और सम्पत्. नामकी दो मनोहारिणी पुत्रियाँ भी थीं। कुछ दिनोंमें जब कोदण्ड मर गया तब कमला ब्राह्मणी
SR No.022754
Book TitlePrabhanjan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1916
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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