SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वधतो वधतो निष्कलंक अथवा निर्दोष शरीरवान कान्ति अने। तेजमां शितळ किरणोवाळा चंद्रमाथी पण वधी गयो. १०८. त्यारपछी बाल्यावस्थाए पहोंचवानी इच्छा करतो अने बधां व्यसन अथवा बुराइओथी दूर रहेतो जीवंधर पांच वर्षनो थइ गयो. सत्य छ, के भाग्य उदय थवाथी पीडा, शुं काम ? १०९. पछी अर्थरहित अस्पष्ट अने तोतडी पण अति मनोहर अने प्यारी वाणीने छोडीने ते अतिशय स्पष्ट वाणीवाळो थइ गयो; कारण के स्त्रीओ पोते जातेज सारा पुरुषने वरे छे. अभिप्राय ए छे के, वाणीरुपी स्त्री पोते जातेज जीवंधरना हृदयमां स्फुरायमान थइ गइ. ११०. त्यारपछी शुभ पुण्यना उदयथी कोइ आर्यनन्दी नामना प्रसिद्ध आचार्य जीवंधर कुमारना गुरु थया. निश्चयथी गुरुज देव थाय छे. १११. पछी आ राजपुत्रे निर्विघ्न सिद्धि प्राप्त करवा माटे पहेलां सिद्धोनी पूजा करी अने नित्य (अनादिनिधन) वर्णमाळाद्वारा पूर्ण विद्या शीख्यो. ११२. श्रीमान् वादीभसिंह कविए रचेल क्षत्रचूडामाण ग्रंथमां " सरस्वतीलम्ब" नामे प्रथम प्रकरण समाप्त थयु. 23 E - ne
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy