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________________ कोर्नु मन संतुष्ट थतुं नथी? १०१. बिचारी तपस्विनी राणी पोताना मनरुपी घरमा पोताना पुत्रने राखती हती अने जिन भगवानना चरणकमळनुं पण ध्यान करती हती. १०२. घणुंज रु अथवा कोमळ वस्तुओवाळी कोमळ शय्याथी, प्रसव बंधन सहित फुलथी पण जने अत्यंत खेद के दुःख थतुं हतुं, तेज राणीने दर्भनी सेज ( पथारी ) पण सारी लागी ! १०३. पोताने हाथे कापेलां जंगली. घान्यज तेनो आहार अथवा भोजन हतुं अने बीजा अन्नथी तेने कई प्रयोजन नहोतुं; कारण के जे शुभ अने अशुभ कर्म कर्यां होय छे तेनुं फळ अवस्य भागवयं पडे छ. १०४. ___त्यार पछी मूर्ख काष्टांगारे गंधोत्कटे करेला उत्सवने (जे के तेणे पोताना पुत्रने माटे को हतो, ) पोताने माटे समझीने अर्थात् एवं जाणीने के मने राज्य मळवानी खुशीमां एणे आ आनंद मान्यो छे, प्रसन्नताथी गंधोत्कटने बहु धन आप्यु. १०५. तेज वखते ते नगरमा जे पुत्रो उत्पन्न थया हता, तेमने पण गंधोत्कटे काष्टांगारनी आज्ञा लइने पोताना पुत्रनुं ते मित्र बाळकोनी साथे पालणपोषण कयु. १०६. _ पछी गंधोत्कटनी स्त्री सुनन्दाना गर्भथी नन्दाढय नामनो एक बाळक बीजो उत्पन्न थयो. ए बाळकथी जीवंधर बहुज शोभीत थयो; कारण के सारो भाइ मुशीबतेज मळे छे. १०७. ए रीते आ सज्जन बंधुओनो मित्र राजपुत्र दररोज
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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