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________________ ( ८१ ) जयकुमार मन ही मन प्रसन्न होता हुआ सोचने लगा लगा। चलो बिना औषधि के रोग मिट गया। परंतु बाहरी दिखावे के लिये शोक करता हुआ कहने लगा सैन्द्री ! अगर सचमुच ऐसा ही हुआ है तो बहुत बुरा हुआ। मैने तो सोचा था भाई का जन्मोत्सव बड़े ठाठ से मनाउंगा। पर दुष्ट विधाताने मेरी अभिलाषायें पूर्ण नहीं होने दी। ऐसे बनावटी शोक को करता हुआ सिपाहियों के साथ वह वहां से चला गया। जय कुमार के चले जाने पर सर्वत्र शांति हो जाने से रानी ने सैन्द्री से कुमार को लाने के लिये आज्ञा दी। उसने उपवन में फूलों के ढेर को खूब हूँढा पर दरिद्री को निधान के जैसे कुमार को न पाकर रोती बिलखती वापस घर लोट आई। उसकी बात सुनकर रानी सूर्यवती बेहोश होकर गिर गई । समय के अनुकूल उपचार से रानी को होश में लाया गया। पुत्र स्नेह से व्याकुल रानी संकटापन्न अवस्था में भी साहस कर के सखियों के साथ उपवन में पहुंची और चारों ओर कुमार को ढूढना शुरु किया । वन-मालिन से भी पूछा कि बत्तानो राजकुमार को कहां छिपाया है ? उस बेचारी ने रोते हुए फूलों के ढेर की तरफ अंगुली निर्देश करते हुए कहा स्वामिनो ! यहीं, इसी ढेर में मैंने तो कुमार को छिपाया था, पर न जाने
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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