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________________ ( ८ः ) आ खड़ी हुई । उसने बड़ी चतुराई से कुमार को फूलों के टोकरे में रखकर हमेशां की तरह बेरोकटोक सिपाहियों के सामने से उपवन में पहुँच गई । · रत्न-कंबल में छुपाये हुए राजकुमार को टोकरे में से निकालकर उसने उन फूलों के ढेर में सुरक्षित रख दिया, और बोला - "हे कुमार ! भेद खुलने के भय से मैं यहां क्षणमात्र भी नहीं ठहर सकती हूँ, आप चिरंजीवी - प्रसन्न रहें । मै फिर आऊंगी - ऐसे कहती हुई वह वार २ सिंहकी तरह घूम २ कर देखती हुई महारानी के पास चली आई इतने में दिन भी पुरी तरह से निकल आया । प्रातः काल में जय कुमार के सिपाहियों ने महारानी के प्रसव के निशान देखकर उन्होने सारा हाल जय से जा सुनाया । सुनते ही साथियों के साथ जय कुमार वहां या धमका और सावधानी से शोध करने पर भी कुछ न मिलने से उसने सैन्द्री से पूछा कि बता - रानी के क्या हुआ ? तब सैन्द्रीने महारानी के गर्भाशय के निकले हुए मैले को दिखाते हुए रोनी सी सूरत से कहने लगी- मालिक ! गजब हो गया ! हमारे तो सारे मनोरथ मिट गये !! आशायें अधूरी रहीं !!! क्या बताऊं महारानीजी के पुत्र होना तो दूर रहा पुत्री भी नहीं हुई 1 4
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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