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________________ ( ४७७ ) हो जाती विपती संपतियां, दुःख भी हों सुख-सारे । तप ज्योति जीवन में होती, भटके न भव-अधियारे । ___ वन्दों वीर प्रभु जयकारी ।४। सुखसागर भगवान महोदय शासन सुखद बताया । हरि कवीन्द्र यश गाते हर दम पार परन्तु न पाया ॥ वन्दों वीर प्रभु जयकारी ।। बर्द्धमान तप-वृहत्स्तवन (दूहा ) ओं अहं के ध्यान-से-वर्धमान हो भाव । वर्धमान तप भाव से-फैले पुण्य प्रभाव ॥ वर्तमान शासन पति-वर्धमान भगवान । फरमावे जगजीव को-मोक्ष हेतु परधान ॥ . अष्ट करम-दल बल टले-अष्ट परम गुण हेत । अष्टम अंग विशेष में-वर्धमान संकेत । तप ज्योति संसार में, जीव सुज्योति स्थान । तप ज्योति को प्रकट कर, पावो पद कल्यान ॥ श्रेणिक महाराजा प्रति-वर्धमान भगवान । फरमावें तप कीजियें-ज्यों सिरिचन्द महान ॥
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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