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________________ ( ४७६ ) सुखसागर की सीमा तप हैं, तप जीवन में प्रभु का जप है । बिन उसके सब जग गपशप है- अरिहंत नमो वद्धमान ॥ ६ भगवान वीर के शासन में , धारो तप हो दृढ आसन में । हो हरिकवीन्द्र परकाशन में अरिहंत नमो वद्ध मान ||७|| ॥ स्तवन २ ॥ ( तर्ज- अवधू सो जोगी गुरु मेरा आशावरी ) वन्दों वीर प्रभु अविकारी, शासन जय जयकारी । वन्दों टेर। समकित धारी श्रोणिक राजा - श्रादिक सब नरनारी । समवसरण में प्रमुख सुनते तप गुण मंगल कारी ॥ वन्दों वीर प्रभु अविकारी |१| वर्धमान तप ओली साधक - होवें कपट अशठ तथा वन्दों वीर जो अविकारी - हो जावें प्रभु जयकारी |२| स्वामी - नामी नगर कुशस्थलपुर के तप कर त्रिभुवन ताजा होकर सारे अधिकारी । भवपारी ॥ श्रीचन्दराजा । भातम काजा ॥ वन्दों वीर प्रभु जयकारी | ३ |
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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