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________________ ( ४०१ ) से आपको ही अपना पति माना है, और मानती हूँ । छल-कपट से बने हुए पुरुष को पता लग जाने के बाद पति मानना मेरे लिये एक घोर अपराध है । मैं ऐसे पुरुष को पर पुरुष मानती हूँ और पर पुरुष से संबंध करना क्या घोर पाप नहीं है ? वज्रलेप के समान राजकुमारी के ऐसे अमिट निश्चय को जानकर राजा श्रीचन्द्र बहुत प्रसन्न हुए। सबके सामने उनने कुमारी की शील- दृढ़ता को सराहा । दण्डनीय और निरोध करने योग्य उस अपराधी चन्द्रसेन को दया करके राजा से छुटकारा दिलवा दिया। वे कहने लगे राजन् ! संसार की स्थिति ही ऐसी है । सभी प्राणी विषयों द्वारा सताये जाते हैं। वासना ही सब दुःखों की जेड़ है। मन में जरासी शिथिलता आने पर वासना बढती ही जाती है, और मनुष्य को अपने स्थान से गिरा देती है । मदिरा मनुष्य को उन्मत्त बनाती है पर वासना में उससे अनंत गुणी मादक शक्ति होती है । मदिरा एक जन्म तक ही काम करती है, और वासना अनंत जन्म तक पीछा नहीं छोड़ती। वासना को सर्वथा जीतने वाले पुरुष जिन भगवान् कहलाते है और वासना को जीतने का अभ्यास करने वाला जैन होता है । अनंते जन्म-जन्मा
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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