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________________ ( २४ ) महाराजा की सेवा में उपस्थित हुए । परस्पर में एक दूसरे का अभिवादन करते हुए राजा दीपचन्द्र ने महाराजा से दृत का परिचय कराया । दूत ने राजकीय ढंग से महाराजा को प्रणाम किया। अपने आगमन का कारण बड़े रोचक ढंग से महाराजा की सेवा में इस प्रकार निवेदन किया: देव ! यहां से कुछ दूर वासुतिका नाम की एक बड़ी अटवी है। उसमें भीलों का स्वामी शूर नाम का पल्लोपति शासन करता है । आज तक कोई राजा उसे परास्त नहीं कर सका है । उसी अटवी के पश्चिम की ओर सिंहपुर नाम का एक सुन्दर नगर है। उसमें श्री शुभगांग नाम के राजा राज्य करते हैं । राजा दीपचन्द्र देव की भतीजी श्रीमती चन्द्रवतीदेवी उनकी पट्टरानी हैं । एक समय कुछ चोर मौका पाकर राजा के महल में घुस गये, और रानीजी के एकावली हार को चुराकर ले गये । मालूम होने पर सिपाहियों ने पद चिन्हों के आधार पर उनका पीछा किया, और कुछ दूर पर माल सहित वे पकड़ लिये गये । दण्ड के लिये राजा के सामने उनको पेश किया। राजा ने उन्हें काफी कड़ा दण्ड देने की आज्ञा दी। तरह तरह की कठोर यातनाओं से व्याकुल होश में चोरों ने साफ २ कह दिया कि हम शूरपल्ली
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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