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________________ (' ३३३ ) अत्यन्त भोली दीखती हो । इस पृथ्वी में श्रीचन्द्र नाम वाले अनेकों व्यक्ति हैं । जिस किसी की प्रशंसा में मुझे ही वह मान लेना ठीक नहीं होता। मदनसुन्दरी ने कहा रहने भी दीजियें, इन बातों में क्या रक्खा है ? क्या आप मुझे पागल ही समझ रहे हैं ? क्या अब भी आप गुप्त रहने की ही चेष्टा करते रहेंगे? अपनी प्रियतमा को तिरछी चितवन के साथ कही हुई इस बात का उत्तर कुमार ने हंस कर ही दिया। वीणापुर के मार्ग में जाते हुए एक राजकीय अधिकारी ने कुमार के पास चन्द्रहास खड्ग और चन्द्रमुखी ललना को देख कर ललचाये हुए भावों से कहा किजरा दीजियें तो, देखु, पाप की तलवार कैसी है ? यह सुन कुमार ने कहा महाशय जी! आप अपनी तलवार सम्हाल लें फिर मेरी तलवार का जौहर देखना । फुर्तीले और बहादुरी भरे उसके वचन सुन कर वह जल भुन गया। वह जा कर अपने साथियों को बहका लाया । वे लोग मारो पकडो । बांध लो । अरे तलवार और स्त्री के चोर ! अब तू भाग कर कहां जायगा? अब तो तू मरा ही समझ ले। इस प्रकार चिन्लपों मचाता हुआ उन उद्दण्ड आदमियों का टोला कुमार के यसि मा पहुंचा।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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