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________________ ( ३३२ ) रही थी ऐसे ही प्रसंग में वीर शिरोमणि कुमार श्रीचन्द्र अपनी प्रियतमा मदन सुन्दरी को साथ लिये धीर गंभीर चाल से चलता हुआ उस पहाडी भूमी को पार कर रहा था। उस समय वहां एक स्तुति पाठक विदेशी कवि मौज में गाता हुआ जा रहा था, वह भी उनके साथ हो लिया, और सब को श्रीचन्द्र की यशो-गाथायें सुनाने लगा! जयतु कुशस्थल पुर नगर, प्रताप सिंह भूपाल । सूर्यवती सुत जयतु जग, सिरि सिरि चन्द कृपाल ॥ राधा-वेधी निस्पृही, सुरतरु सम दातार । पर नारी के बन्धुवर, जय सिरिचन्द्र कुमार ॥ शून्य नगर कुण्डलपुरे, राक्षस मानी हार । नया बसाया चन्द्रपुर, जयसिरि चन्द कुमार ॥ . . परणी छोडी पदमणी, चन्द्रकला वरनार । लक्ष्मीदत्त पालित सुतन, जय सिरिचन्द्र कुमार ॥ .., विद्याधर विजयी हुए, जो चोरों का काल । .: 'बुद्धि' सुलोचन वैद्यवर, जय सिरि चन्द दयाल ।। .. . .. श्रीचन्द्र ने कहा कविराज ! कहां से आरहे हो ? बन्दी ने कहा देव ! मैं कुण्डल पुर से आया हूं। वीणापुर जाता हं। कुमार ने उसे भारी पारितोषिक दिया मदन सुदरी ने कहा आपने अपना चरित्र नहीं सुनाया तो क्या हुआ। आज मैंने तो सुन ही लिया । कुमार ने कहा प्रिये ! तुम
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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