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________________ ( ३१२ ) के मृत्यु की सारी घटना से सूचित कर दिया । वह बोला, सुन्दरी ! सुनो, कुमंत्रः पच्यते राजा, फलं कालेन पच्यते लंघनैः पच्यते तापः, पापी पापेन पच्यते ॥ १ ॥ अर्थात् बुरी और अनिष्ट कारी सलाह से राजा बर्बाद हो जाता है, फल समय पाकर ही पकते हैं । बुखार लंघन करने से ही उतरता है और पापी पुरुष अपने किये हुए पाप कर्मों के परिपाक होने पर अपने आप ही नष्ट हो जाते हैं । 1 सुन्दरी ! आज तो हम यहीं ठहरेंगे परन्तु कल हम यहाँ से किसी दूसरे स्थान के लिये प्रस्थान करेंगे । इस प्रकार दोनों ने वह दिन और रात्रि बड़ी ही प्रसन्नता और प्रेमपूर्वक बिताई | जैसे तैसे भी वह सुहाग-रात बड़ी ही विलक्षण और प्रेमपूर्ण व्यवहार तथा संभाषण से व्यतीत हुई । प्रातः काल होते ही वे दोनों उठकर अपने अपने आवश्यक कार्यों से निवृत्त होकर प्रस्थान की तैयारी करने लगे। वहां के सारे रत्न और सारभूत वे दोनों 'अंजन कु पिकाए ं उन्होंने अपने साथ ले लीं और उसी
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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