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________________ ( ३११ ) जन्दी विवाह करके हमें यहां से जल्दी प्रस्थान कर देना चाहिये। मदनसुन्दरी को समझाते हुए कुमार ने कहासुन्दरी ! तुम अपने मन से भय निकाल दो। तुम्हारा अब कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता । यह तो बताओ यहां इस धूमीधर में मध्याह्न का पता कैसे लगेगा ? । राजकुमारी ने बड़ी नम्रता से कहा-नाथ ! इसी भवन के पास एक छोटीसी खिड़की है। उसीसे दिन-रात और दोपहर का पता चलता है इसके बाद कुमार ने उसके साथ प्रातः काल होने पर वहीं पारणा किया। दोपहर के समय तक वे दोनों वहाँ उस विद्याधर की प्रतीक्षा करते रहे मगर लग्न के समय तक वह वहाँ न आया। पूर्व निश्चयानुसार उन दोनों ने उसी लग्न में अपना विवाह कर लिया इसके बाद वे दोनों उसी महल में विश्राम करने लगे। गोष्ठी के बीच में मदन सुन्दरी ने कुमार से पूछा, "नाथ ! मुझे इस बात का विचार होता है कि विवाह के लिये अत्यन्त उत्कण्ठित वह विद्याधर अभीतक क्यों नहीं श्राया ? यह सुनकर कुमार ने राजकुमारी को उस विद्याधर
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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