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________________ ( ६ ) चारों दरवाजों से प्रारम्भ होकर चारों दिशाओं में दुकानों की श्रेणियों से विराजित चार बड़ी सड़कें जगह जगह चौराहों से मेल खाती हैं । #2 दीपशिखा के ईशान कोण में राज - वर्गियों के अग्निकोण में व्यापारियों के वायु कोण में क्षत्रियों के और नैऋत्य कोण में सब प्रजाजनों के निवास स्थान बने हुए हैं । उसके बाहिर पत्थरों से बंधा हुआ कमलों से राज हंसों से विराजित एक बहुत बड़ा पद्म सरोवर नाम का तालाब बना हुआ है । जगह जगह मधुर स्वादिष्ट जल से पूर्ण बावड़ियां कुएँ प्याउ एवं फल फूलों से लदे पढ़ेपेड़ पौधों वाले हरे भरे उद्यान नगर की शोभा को चौगुनी बढ़ा रहे हैं । हे महाराज ! दीपशिखा को तारीफ मुह से नहीं की जा सकती । देखने से ही पता चलता है कि कैसी है वह ? अच्छा होता यदि आप वहां पधार कर उसे देखते । मैं मानता हूं आपके आतित्थ्य -सत्कार को करने में दीपशिखा के निवासी हमें भी बड़ा आनन्द प्राप्त होगा। आप एक बार जरूर २ वहां पधारें । इस प्रकार व्यापारी वरदत्त द्वारा दीपशिखा की विशिष्ट तारीफ को सुन कर एवं उसके भाव पूर्ण आमंत्रण
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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