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________________ (८) एक दिन महाराजा अपनी सुविशाल राज सभा में विराजमान थे । उस समय प्रति हारी द्वारा श्रज्ञा प्राप्त एक सार्थवाहने उस सभा में बड़े अदब के साथ प्रवेश किया । शिष्टाचार के बाद महाराजा ने उससे परिचय पूछा तब उसने कहा कि देव १ मैं दीपशिखा का रहने वाला हूं । मेरा नाम वरदत्त है। व्यापार के निमित्त मेरा यहां आना हुआ है। आज आपके दर्शन पा मैं कृतार्थ हुआ हूँ । महाराजा प्रतापसिंह ने आगंतुक व्यापारी का स्वागत करते हुए पूछा कि क्या आप अपनी उस दीपशिखा नगरी का परिचय भी देंगे ? सार्थवाह वरदरा ने बड़ी प्रसन्नता से कहा क्यों नहीं । देव ? ऐसे तो भारतवर्ष में कई नगर हैं परन्तु दीपशिखा का ठाठ पूर्व है । देवाधिक सौन्दर्य को धारण करने वाले स्त्री-पुरुषों से वह इन्द्रपुरी को भी मात देती है। भगवान के मंदिरों से कोट और बुर्जों से एवं राज महलों से शोभायमान इस नगरी के समान दूसरी कोई नगरी शायद ही कहीं होगी ! जिसके बीच में चार दरवाजों वाला, कनक कलशों से मंडित श्री यदि नाथ भगवान का एक बड़ा ही रमणीय विशाल जैन मंदिर है । जो उसे तीर्थ स्थान का महत्व प्रदान करता है । ! 1
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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