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________________ बजली निकल पड़ा। इस कारण राजा ने निरपराध सन्यासी को ही पोर समझकर गिरफ्तार करलिया और उसे इतनी सज़ा दी कि वह मर गया । ... इस प्रकार वह सन्यासी मर कर प्रेत-योनि में राक्षस होगया। उसने पूर्वजन्म को स्मरण करके राजा पर वडा क्रोध किया । क्रोध में आकर उसने राजा को मार डाला इसके बाद नगर के सभी मनुष्यों तथा पशुओं तक को सताने लगा। इससे तंग आकर नगर के मनुष्य और सब जीव जन्तु यहां से भाग गये, और यह सारा नगर उबड़ गया। राक्षस ने रानियों का कुछ नहीं बिगाड़ा। रानी गुणवती गर्भवती थी। राक्षस ने सोचा था कि अगर इस रानी के पुत्र होगा तो उसे मैं मार दंगा । भाग्य से पुत्री ही उत्पन्न हुई और उसका नाम चन्द्रमुखी रखा गया। मालूम नहीं अब उसका क्या भविष्य है ? पुरुषोत्तम! नगर में जो कोई भी जाता है, राक्षस उसे क्रोध में पाकर मार डालता है। इसीलिए मैं तुम्हें भी जाने से रोकती हूँ। यह सब सुनकर भी वीरवर कुमार श्रीचन्द्र ने नगर में प्रवेश कर ही लिया । वह शून्य बाजारों को देखता हमा राजमहल के पास जा पहुंचा। उसने राजमहल की मोर घष्टि. अली । झरोखों में बैठी हुई रानियों को देख
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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