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________________ कुमार ने कहा योगिराज ! मैं मनोरंजन के लिये घर से निकलता हूं। आप जैसे महात्माओं की दया से मुझे कहीं कोई भय नहीं होता है। · योगी ने कुमार की वीरवाणी को सुनकर कहा कि भाग्यशाली मुझे कोई मंत्र सिद्ध करना है, अाज अर्धरात्री के समय तुम मेरे उत्तर साधक बन सकोगे क्या ? कुमार ने बिना किसी हिचकिचाहट के स्वीकार कर लिया । योगी ने अपनी साधना कुमार के उत्तर साधकत्व में की मंत्र जापाहुति आदि से वह सफल मनोरथ होगया । उसने मधुर स्वर में कहा कुमार ! मैं तुम्हारे साहस से सन्तुष्ट हुआ क्षुद्र प्राणियों को अन्धा बनानेवाली यह दिव्य जडी देता हूँ। तुम इसे ग्रहण करो । एक बात और कहता हूं, आगे से तुम कभी किसी योगी का विश्वास मत करना। श्रीचन्द्रकुमार ने कहा महात्मन् ! आपकी बड़ी कृपा है जो हित शिक्षा के साथ इस दिव्य जडी की बक्षिस मुझे दी । विधि पूर्वक जड़ी को लेकर योगी को नमस्कार कर और आज्ञा पाकर कुमार अपने घर को लौट आया।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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