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________________ । ११० ) लमा । दूर २ चले जाने पर देरी से आये हुए कुमार को सेठ ने एक दो वार बड़े प्यारभरे शब्दों में कहा बेटा ! तुम्हारे दूर चले जाने से देरी से आने से तुम्हारे विरह में हमारा मन जल बिना मछली के जैसे तडफता है । बड़े विनीत भावसे कुमार हाथ जोडकर अपने पिता से कहता है पूज्य पितानी ! क्या बताऊं रथ में बैठे बाद स्वतन्त्रता के साथ घूमने में जो आनन्द आता है उसको छोडने में मेरा मन भी बहुत दुःख पाता है। पर अब मैं जल्दी आनेकी चेष्टा करूगा। पुत्र के विनीत वचनों को सुनकर सेठ गदगद होता हुआ कहता है बेटा ! यदि ऐसा है तो जिस प्रकार तुम प्रसन्न हो वैसा ही करो । मैं तो तुम्हारे दुःख में दुःखी और तुम्हारे सुख में सुखी हूँ। मेरी ओर से तुम्हारी क्रीडाओं में आज से कोई बाधा न होगी। पिता को आज्ञा को पाकर कुमार बहुत प्रसन्न हो गया। एक रोज वह त्रिकूट पर्वत की शोभा देखने गया। वहां पद्मासन लगाये हुए किसी भैरव नाम के योगी को ध्यान करते हुए देखा । कुमार ने योगी को नमस्कार किया। उसके गुणों से और लक्षणों से प्रसन्न होकर योगी ने उसे कहा बेटा ! तुम अभी छोटे हो इस डरावने जंगल में अकेले कैसे आये हो ?। . .
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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