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________________ विजयप्रशास्तिसार। पाना हुआ यहां पर फाल्गुण चातुर्मास रह करके आपने स्तम्भ तीर्थ जाने के लिए प्रयाण किया। इस प्रकार पृथ्वी तलको पावन करते हुए चाणसमा राजनगर-' आदि की यात्रा करते हुए आपने स्तम्भतीर्थ में प्रवेश किया । आपके उपदेश से यहां के लोगों ने भी प्रतिष्ठादि बहुत से कार्य किये । भार वकों के आग्रह से चातुर्मास की स्थिति सूरिजी ने यहांही की। चातुर्मास व्यतीत होने के बाद आपने अकबरपुर नामक शाखापुर में प्राकर चातुर्मास किया । तदनन्तर बिहार करके आप गन्धारपुर में पधारे। गन्धार बन्दर में भी आपने बहुतसी प्रतिष्ठाएं की, और उपदेश द्वारा लोगों को लाभ प्रदान किया। यहां से आप विहार करके भूगु. कच्छ-रानेर आदि होते हुए तापीनदी को नाबसे उल्लंघन करके सु. रत पधारे। यहांपर भी प्रतिष्ठाएं की और चातुर्मास की स्थिति समाप्त करके बिहार किया। स्तम्भ तीर्थ आदि स्थानों में होते हुए श्रीविजयदेवसूरि के सहित भाप श्रीसिद्धाचल जी पधारे । वहांपर एस समय स्तम्भ तीर्थ-राजनगर-पत्तन-नवीन नगर-द्वीप बन्दिर आदि नगरों से संघ आए हुए थे। इन लोगों को भी सूरिजी के उपदेश से बहुत लाभ मिला । यहां से भीविजयसेनसूरि जी ने द्वीप बन्दर के लोगों के आग्रह से द्वीप बन्दर की ओर प्रयाण किया और गु. जरात के लोगों के आग्रह से श्रीविजयदेवसूरि को गुजरात में विचरने की आज्ञा दी। जिस प्रकार कस्तूरी की सुगन्धि फैलाने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। यह पापही से फैलजाती है। उसी प्रकार सूरीश्वर जी की यश-कीर्ति चारों ओर फैलगई । सौराष्ट्र देशमें विचरने से लौरा'ट्रदेश के लोग अपने २ ग्रामों में लेजाने के लिये नित्य प्रार्थना करते
SR No.022726
Book TitleVijay Prashasti Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
PublisherJain Shasan
Publication Year1912
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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