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________________ बारहवा प्रकरण। विजयदानसूरि और श्रीहीरविजयसूरि के दो कीर्ति स्तंभ बड़े ही पाश्चर्यकारीये । इसकीति स्तम्भके भागे प्रत्येक भाद्रशुक्ल एकादशी के दिन वटपल्ली और पत्तन नगर के लोग इकट्ठे होकरके बड़ा सत्सव करते हैं। यहां आकरके विजयसेनसूरि ने इस कीर्ति स्तम्भ के सामने गुरुपयों की स्तवना की। यहां से बिहार करके पत्तन नगर के श्रावकों के प्राग्रह से पाप पत्तन पधारे। ' दूसरी ओर, इस पत्ननगर में विराजते हुए श्रीविजयदेवसूरि के वागविलास से उत्साहित होकर लुकामत का स्वामी मुनि मेघराज (जो पहिले पहल लुकामत को त्याग करने वाले मेघजी ऋषि का प्रशिष्य था) के मनमे अपने मतको त्याग करने की इच्छाहुई । वह भी. विजयसेनसूरिजी के चरण कमल में आया। विजयसेनसूरिजी की देशना सुनने से इन महानुभावकी श्रद्धा और भी पक्की हुई । इसके बाद मुनि मेघराज ने लुका मत को त्याग किया और श्रीतपागच्छरूप वृक्ष की शीतल छाया में रहने लगा। बड़े समारोह के साथ तपागच्छ में यह दीक्षित किए गये। - एक दिन इस पत्तननगर के एक 'कुमरगिरि' नामक पुर के भाचकबर्ग ने अतीव आग्रहपूर्वक विनति की- हेवपालु महाराज ! माप के चरणकमल से हमारा छोटा पुर पवित्र होना चाहिये।' लाभ का कारण देख करके मुनिवरों ने आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा के दिन इस पुर में प्रवेश किया। इस पुर में चातुर्मास करने से यहाँ के लोगों को धर्म कृत्य करने का अच्छा अवसर प्राप्त हुआ। पत्तननगर के लोग भी इस उपदेश का लाभ सर्वदा ले सकते थे। . . चातुर्मास समाप्त होने पर श्रीसूरीश्वरजी श्रीसंस्लेश्वर पार्श्वनाथ की यात्रा को पधारे । पुनः भीसंघ के आग्रह से आपका पचननगर
SR No.022726
Book TitleVijay Prashasti Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
PublisherJain Shasan
Publication Year1912
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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