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________________ नववा प्रकरणा । ' ५ ईश्वर को मान करके इसपर अनेक प्रकार का बोझा डाल देना या ईश्वर को मान करके उसके विचित्र प्रकार के स्वरूप बताकर कलङ्कित करना यह क्या ईश्वर को मानना है ? नहीं ! कदापि नहीं यह भक्तो का काम नहीं है। यह काम तो कुभकों का है । इस प्रकार बड़े विस्तार से ईश्वर का स्वरूप सुनतेही राजा का चित्त निःसंशय होगया। और अन्य वादियों के मुंह उत्तर गये । इस सभा में सूरिजी की जय होगई। सूरिजी ने वादशाह के समुख ब्राह्मणो को मूक बनाकर यश स्तंभ गाड़ दिया। इसके बाद बादशाह संस्तुति के भाजन होकर सूरीश्वर अपनी शिष्य मण्डल के साथ उपाश्रय में पधारे। इस समय में सूरीश्वर ने वाचक पद का नन्दिमहोत्सव कर वाया, जिसमें अकबर बादशाह के अबजल फयज नामक मंत्री ने अधिक द्रव्य का व्यय किया । सूरीश्वर ने अकबरबादशाह के साथ धर्मचर्चा करने ही में दिवस व्यतीत किए । -अब एक दिन राजा परम प्रसन्न चित्त बैठा था । राजा का चित्त बड़ाही प्रसन्न था । इस समय में सूरीश्वर ने राजा से कहा किः-' हेनुपेश्वर ! आप पृथ्वीपाल हैं । जगत् के सब जीवों की रक्षा करने का दावा रखते हैं । तथापि गो, वृषभ, महीष, महिषी की जो हिंसा आपके राज्य में होती है वह हमें आनन्ददायक नहीं हैं । अर्थात् जगत् का उपकार करने वाले निरपराधी जीवों की हिंसा करना कदापि योग्य नहीं है । दूसरी बात यह कि आप जैसे . सार्वभौम-सौम्य राजा को मृत मनुष्यद्रव्य ग्रहण करना तथा म नुष्य बांधी जाय तब उसका द्रव्य लेलेना यह भी आप की कीर्ति के लिए योग्य नहीं है । अर्थात् ये काम आपकी कीर्ति को हानि पहुंचान बाले हैं । अत एव हे राजन् ! उपर्युक्त कार्य आप
SR No.022726
Book TitleVijay Prashasti Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
PublisherJain Shasan
Publication Year1912
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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