SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ BAN विजयप्रशस्तिसार । सातवों प्रकरण । ... ( श्रीविजयदेवसूरि का जन्म, दीक्षा, विजयसेनसूरि की . कहुई प्रतिष्ठायें तथा हीरविजयसूरि और विजयसेन सूरि का समागम ।) राजदेश नामक देशके भूषण समान' इलादुर्ग' (इडर ) नामकी नगरी में एक 'स्थिरा' नामका भेष्ठी रहता था । इस श्रेष्ठी की एक 'रुपाई' नामकी भार्या थी जो बड़ी सुशीला एवं पतिनता थी । इस प. तिप्राणा अबला के गर्भ से सं० १६३४मिती पौषशुक्ला त्रयोदशी के दिन एक पतिभाशाली और उत्तमगुण सम्पन्न बालक का जन्म हुमा । माता पिता ने बड़े समारोह के साथ इस बालक का नाम 'वास' रक्खा । बालक क्रमशः बालपन को त्याग करके जब बड़ा हुमा तब एक दिन उसके पिता का अनशनादि करके मुसमाधिपूर्वक देहान्त होगया। पिता के देहान्त होजाने के बाद इस बैराग्यवान् बालक ने अपनी माता से कहा:-मै शिवमुख को देनेवाली दीक्षा को ग्रहण करने की उत्कट इच्छा रखता हूं, अतएव आप मुझे मामा दीजिए।" पुत्र के इस दृढ़ता के बचनों को सुन करके माता ने यह कहा कि "हेनन्दन ! मैं भी तेरे साथ में बही मोक्षसुख को देनेवाली दीक्षा ग्रहण करूंगी। अपने को अनुमति देने के साथ स्वयं माता का दीक्षा लेने का विचार सुनकर पुत्र और भी अधिक आनन्दित हुआ। माता ने यही वि. चारा कि जैसे रत्न जो होता है वह सुवर्ण के साथ ही में शोभा को धारण कर सकता है । वैसे यह मेरा पुत्र भी जब गुरू की सेवा में रहेगा तव ही योग्यता को प्राप्त करेगा' वस! यही विचार का निपूचय करके माता अपने पुत्र के साथ इलाडूर्ग (इडर) से चलकर
SR No.022726
Book TitleVijay Prashasti Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
PublisherJain Shasan
Publication Year1912
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy