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________________ विनयत्रशस्तिसार | जिस समय में श्रीहीरविजयसूरीश्वरजी, श्रीविजयसेनसूरी श्वर के साथ में गुजरात देश में विचरते थे। उस समय में एक अभूतपूर्व बात देखने में आई । • लुम्पाकमतका अधिकारी मेघजी नाम का एक विद्वान् था स्वयं शास्त्र देखने से जिन प्रतिमा को देख कर अपने अन्धत्व को दूर करने की वाञ्छा थी । श्रीदीरविजयसूरि प्रभृति इस बात को सुन करके बड़े हर्षित हुए। और इस बात को सुन करके श्रीविजय सेनसूरि इत्यादि पुनः अहम्मदाबाद पधारे। श्रीसूरीश्वरों के आने के बाद 'मेघजी' ऋषि अपने सत्ताइस पण्डितों के साथ, श्री सूरिजी के सन्मुख उपस्थित हुआ । लुपाक मनको त्याग करके श्रीसूरीश्वर के सत्योपदेश को उसने ग्रहण किया । सूरीश्वर ने इन 'मेघजी ऋषि' आदि की इच्छा से इन लोगों को बड़े महोत्सव के साथ नवीन शैक्षत्व में स्थापित किया । मेघजी ऋष आदि श्रीश्रा चार्य के साथ में शास्त्राध्ययन को करते हुए, बड़े विनयभाव ले रहने लगे। इससे लोगों को और हो आनंद होने लगा । कुछ समय के उपरान्त अहमदाबाद से विहार करके आचार्यउपाध्याय - पंडित एवं मेघजी आदि समस्त मण्डल के साथ में बिचरते हुए श्रीहरिविजयसूरिजी 'अणहिलपुर' पाटन आए । आपने चातुर्मास भी यहां ही किया । चातुर्मास समाप्त होने के बाद सं-१६३० मिती पोष कृष्ण चतुर्दशी के दिन अपने पाटघर श्रीविजयसेनसूरि को गच्छ की सारणी-वारणा 'पडिचोयणा प्रदान अर्थात् गच्छ ऐश्वर्य के साम्राज्य की आज्ञा (अनुमति) दी | इस कार्य के ऊपर इस नगर के लोगोंने बड़ा भारी उत्सव किया । जिस अवसर पर मरु - मालव- - मेदपाठसौराष्ट्र-कच्छ - कोकण आदि देशों से हजारों लोक एकत्रित
SR No.022726
Book TitleVijay Prashasti Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
PublisherJain Shasan
Publication Year1912
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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