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________________ शीलव्रत के पालन से गुण तथा नहीं पालन करने से दोषों का सम्यग् विचारकर, मुनिभगवंत के उपदेश से मेरी पत्नियों ने परपुरुष इच्छा त्याग के विषय में नियम ग्रहण किया। यह बात भी मेरे हित में ही हैं, ऐसा जानकर ईर्ष्या रूपी अग्नि के शांत हो जाने पर श्रेष्ठ समाधि प्राप्त हुई। इसलिए अब मैं एक-एक बार ही मुनिराज पर लकडी से प्रहार करूँगा, ऐसा विचारकर वहीं पर खडा था। उतने में ही मुनिभगवंत परिग्रह परिमाण नियम के विषय में इस प्रकार कहने लगे - जो धीरपुरुष परिग्रह का परिमाण करते हैं, उन पुण्यात्माओं का भव-समुद्र परिमित हो जाता है। धन, धान्य आदि के रूप में, परिग्रह नव प्रकार का है। जितना अल्प परिग्रह उतनी अल्प चिंता और जितना अधिक परिग्रह, चिंता उतनी अधिक होती है। लोभ के भार से पराजित चित्तवाले भव-समुद्र में डूब जाते है और संतोष रूपी अमृत से सिंचे गये प्राणी, दुःख रूपी अग्नि से दूर हो जाते हैं। परिग्रह से अनिवृत्त प्राणी शीत, उष्ण, पवन, भूख, प्यास, पीडा आदि से संभवित क्लेश और परिश्रम को सहन करते हैं। इच्छा का परिमाण करनेवाला प्राणी, गुणाकर के समान समृद्धि आदि सुख प्राप्त करतें हैं और नही करने से गुणधर व्यापारी के समान दुःख प्राप्त करतें हैं। उनकी कथा इस प्रकार है - जयस्थल नामक गाँव में विष्ट, सुविष्ट नामक दो भाई व्यापार करते हुए आपस में स्नेहपूर्वक निवास कर रहे थे। बडाभाई विष्ट, लोगों में अनिष्ट था तथा व्यवहार से बेपरवाह था। वह अपने स्वजनों तथा दुःखित अतिथियों का सत्कार आदि नही करता था। दिन-रात धन कमाने के लिए क्लेश सहन करता था। भिक्षुक भी उसकी निंदा करते और वह अतिदुःखपूर्वक समय बीताने लगा। पुनः सुविष्ट औचित्यवृत्तिवाला और सर्वत्र बुद्धिमान् था। वह कल्पवृक्ष के समान अपने स्वजन तथा भिक्षुकों का वांछित पूर्ण करता था। एकदिन सुविष्ट ने घर पर पधारे क्षमावंत मुनिभगवंत को बहुमानपूर्वक सुंदर अशन-पान वहोराये। तब उसने युगलिक (भोगभूमि) संबंधित मनुष्य आयु बांधा। मुनि को वहोराते समय वहाँ पर खडा विष्ट थोडा हंसकर अपने मन में सोचने लगा - अहो! व्यापार करने में असमर्थ ये पाखंडी मुनि प्रतिदिन दूसरों के घरों को लूटतें है। व्यर्थ ही उनको दान देने से क्या लाभ है? इस प्रकार सोचकर विष्ट ने दानांतराय तथा नीचगोत्र बांधा। ____एकदिन विष्ट ने खनिजकारों को देखकर आने का कारण पूछा। तब उन्होंने कहा इस पर्वत के मध्यभाग में बडीनिधि है, किंतु उसे ग्रहण के लिए हमारे पास पर्याप्त सामग्री नही है। विष्ट ने कहा - खनन के योग्य शेष सामग्री मैं आपको दिलाऊँगा। उन्होंने कहा - यदि ऐसा है तो हम आपको निधि का यथोचित भाग देंगें। ऐसा निर्णयकर, शुभ दिन में मन से व्याकुलता रहित विष्ट ने धन के
SR No.022710
Book TitlePruthvichandra Gunsagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaivatchandravijay
PublisherPadmashree Marketing
Publication Year
Total Pages136
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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