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________________ धरणश्रेष्ठी और महालक्ष्मी की जो विनया नामक पुत्री है, वह ही ऋद्धिसुंदरी थी। पुण्यसारश्रेष्ठी और वसुंधरा की जो देवी नामक पुत्री है, वह ही गुणसुंदरी थी। विनयन्धर ने उन चारों कन्याओं के साथ विवाह किया। पूर्व के पुण्य के प्रभाव से ही, ये पाँचों सुख भोग रहे हैं। राजन्! जो इन पाँचों पुण्यात्माओं को विघ्न करता है, वह दरिद्री बनता है अथवा मर जाता है। इनके हुंकार करने मात्र से ही मनुष्य भस्मीभूत हो जाता है, किन्तु मन से भी इन्होंने तेरा विपरीत नहीं सोचा है। इसलिए राजन्! तुम भी अपनी आत्मा को अच्छी तरह से भावित करना। क्योंकि दुर्निवा ऐसे परस्त्रियों की आसक्ति से, मनुष्य दुःख की परंपरा प्राप्त करता है। शील की रक्षा के लिए, शासनदेवी ने इनको कदरूपी बनायी थी। क्योंकि पापकार्यों से अटकने के लिए कद्रूप भी शुभ के लिए ही होता है। इस प्रकार के सद्गुरु वचन रूपी अमृत से राजा मिथ्यात्व रूपी विषसमूह रहित बना। तत्पश्चात् उदार बनकर, राजा अपने प्राण के समान जिनधर्म का पालन करने लगा। संवेगरंग से रंगे राजा ने, धैर्य धारणकर अपनी गर्भिणी रानी का राज्य पर अभिषेक किया और स्वयं विनयन्धर और उसकी पत्नियों के साथ, शांतचित्त से सद्गुरु के पास दीक्षा ग्रहण की। विजयन्ती देवी, राज्य का परिपालन करती हुई एक पुत्री को जन्म दिया। उससे मंत्री गण आदि चिंतातुर बने। पुत्र हुआ है, इस प्रकार की घोषणाकर, उसका जन्म महोत्सव मनाया। पुरुषवेष पहनाकर उसे रहस्य में रखा। क्रम से वह यौवन अवस्था में आयी। विजयन्ती देवी के आदेश देने पर, कन्या के वर की चिन्ता के लिए मंत्री ने अपनी बुद्धि का उपयोगकर, यक्ष की आराधना की। यक्ष भी प्रत्यक्ष हुआ और मंत्री से कहा-कल पुत्री के वर के रूप में पोतनपुर राजा के पुत्र को शीघ्र ही उद्यान में लाऊँगा। कन्या के पूर्वभव का पति ही इस देश का राजा बनेगा। इस प्रकार कहकर यक्ष अदृश्य हुआ। आज मैं कन्या-राजा को साथ लेकर इस उद्यान में आया हूँ। शेष सब भी आपको प्रत्यक्ष ही है। आपको देखने मात्र से ही, कन्या को आप पर तीव्रराग हुआ है। क्षणमात्र में ही कामविकार से ग्रस्त बन गयी है। दोनों आँखों की चपलता से, शर्म से, मुख झुकाने से, शरीर के रोमांच से, स्खलना से युक्त शब्दों के उच्चार से, क्या आपके समान चतुर ने इस कन्या को नहीं पहचाना? क्योंकि बुद्धिमंत पुरुष अपनी चतुरता से दूसरों के मनोभाव जान लेते हैं। ऐसे मंत्री के वचनों को सुनकर बुद्धिनिधि कुमार ने राज्य और कन्या, दोनों का स्वीकार किया। कुमार ने आडंबरपूर्वक गुणसेना कन्या का हाथ ग्रहण किया। सुंदर बुद्धिवाले मंत्रीयों ने कमलसेन कुमार का चंपाराज्य पर अभिषेक किया। जो शंखभव में कलावती पत्नी थी, वही गुणसेना बनी है। इस कारण से उन दोनों में विशेष प्रेम 33
SR No.022710
Book TitlePruthvichandra Gunsagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaivatchandravijay
PublisherPadmashree Marketing
Publication Year
Total Pages136
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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