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________________ ___ इतने में कापालिक भी वहाँ पर आ गया। कुमार ने अपना वास्तविक रूप प्रकट कर, कापालिक की तर्जना करने लगा। कापालिक भी तलवार लेकर, कुमार के साथ युद्ध करने लगा। कुमार ने क्षणमात्र में ही उसे यमनगरी पहुँचा दिया। कन्याएँ यह सब देखकर खुश हुई। पश्चात् गिरिसुंदर ने कहा - यदि तुम कहो तो मैं शीघ्र ही तुम सबको अपने-अपने स्थान पर पहुँचा दूं? सुभद्रा के वचन से गिरिसुंदर को पहचानकर, उन कन्याओंने कहा - पति बिना हम अपने स्वजनसंबंधियों को खुद का मुख दिखाने में लज्जा का अनुभव कर रहें हैं। इसलिए हमें आपका शरण हो अथवा भाग्यहीन हम अग्नि का शरण ग्रहण करेंगे। आपने उपकार कर हमें खरीद लिया है। हम आपको छोडने में समर्थ नहीं हैं। आप हमारा स्वीकार करें अन्यथा हम अग्नि में प्रवेश कर अपने प्राणों की आहुति दें देंगें। केवल करुणा रसवाले सज्जन पुरुष हीन-दीन मनुष्य वाणी के उचितअनुचित के बारे में गणना नहीं करते हैं। इस प्रकार के दृढ निश्चयवाली उन कन्याओं को देखकर, करुणा पूर्वक कुमार विचारने लगा - इन शुद्ध कन्याओं को भी भेजना चाहता था। किसी भी प्रकार से इनको मरते हुए मैं देख नही सकता हूँ। इसलिए पति रहित इन कन्याओं का मैं नाथ बनता हूँ। ऐसा निश्चय कर, कुमार उस स्थान पर रहते हुए, कन्याओं के साथ एक मास व्यतीत किया। एकदिन कुमार को अपने बंधु याद आएँ। पत्नियों को उसी स्थान पर स्थापित कर, कुमार ने रूप परावर्त्तन किया। पांडुपुर के समीप आया और शोक से व्याकुल समस्त नागरिक लोगों को देखा। कुमार ने किसी व्यक्ति से शोक का कारण पूछा। तब उसने कहा – गिरिसुंदर नामक राजपुत्र, किसी चोर को पकडने के लिए निकला था। एक मास बीत चुका है, किंतु अभी तक वापिस नहीं लौटा है। आज तो युवराज का पुत्र रत्नसार भी उसे ढूँढने के लिए कहीं पर चला गया है। इसलिए शोक अधिक बढ़ गया है। वज्रघात की उपमावाले उस वचन को सुनकर, गिरिसुंदरकुमार अपने भाई को खोजने के लिए शीघ्र ही नगर से बाहर निकला। गाँव, आकर, नगर, अरण्य, पर्वत के शिखर पर, गुफाओं में ऐसे अनेक स्थलों पर उसे ढूंढा। भूख-प्यास की अवगणना करता हुआ कुमार मार्ग पर मिलते मुसाफिरों से भी इस विषय में पूछता था। किंतु कहीं पर भी रत्नसार के समाचार न मिले। ___पश्चात् कुमार ने किसी देवकुल में मुसाफिरों की बातचीत सुनी। उनमें से एक ने कहा - भाई! एक कौतुक की बात सुनो। विविध देशों को देखने की इच्छा से, मैं कुतूहलतापूर्वक भ्रमण करता हुआ सैंकडों हिंसक प्राणियों से व्याप्त किसी उज्जड़ देश में आया। तब देव सदृश निरुपम रूपवाला कोई राजपुत्र दिखायी दिया। हम दोनों साथ में आगे बढने लगे। उतने में ही सामने किसी सुंदर तथा 102
SR No.022710
Book TitlePruthvichandra Gunsagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaivatchandravijay
PublisherPadmashree Marketing
Publication Year
Total Pages136
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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