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________________ धन्य-चरित्र/89 पुत्री ने कहा-"नहीं, माता! यह युक्त नहीं है, क्योंकि आप राजा की अग्र-महिषी हैं। आप स्त्रियों में श्रेष्ठ हैं। अतः आपके नहीं जाने पर देवता प्रसन्न-चित्त नहीं होंगे, बल्कि कोई भी महा-विघ्नकारी देव-कोप उपस्थित हो जायेगा। अतः आप सपरिवार चली जायें। विशेषतापूर्वक महोत्सव करें। मैं भी दो-चार घड़ी में शिर की आर्ति कम हो जाने पर शीघ्र ही उपस्थित हो जाऊँगी। अतः मेरी प्रिय सखी को छोड़कर बाकी की सभी सखियों को लेकर चली जायें। मेरी चिंता न करें। बीच-बीच में जब कभी भी ऐसा सिर-दर्द होता है, तो एक-दो दिन रहकर ठीक हो जाता है। अतः विषाद न करें। इच्छापूर्वक तथा हर्षपूर्वक महोत्सव कीजिए।" इस प्रकार कहकर माता को भेज दिया। दो प्रिय सखियों को छोड़कर सभी दास-दासी, द्वारपाल, अन्तपुर-रक्षक आदि से युक्त पट्टरानी उद्यान में चली गयी। सुनन्दा ने भी संकेतित अवसर जानकर पिछवाड़े के झरोखे में रस्सीमय निस्सरनी लगाकर छोड़ दी। प्रिय सखी क्षण-क्षण में वहाँ आकर रूपसेन के आगमन को देखती थी और सुनन्दा अटारी के गवाक्ष के बीच घूमती थी। इधर उसी नगर में महाबल नामक एक जुआरी रहता था। प्रतिदिन जुए में आसक्त रहते हुए द्युत-क्रीड़ा करते हुए काल व्यतीत करता था। एक बार उसने जुए में बहुत सारा धन हार दिया। मस्तक पर अत्यधिक ऋण हो गया। अन्य जुआरी धन के लिए उसे पीड़ित करने लगे। तब महाबल ने सोचा-"ऋण तो बहुत हो गया, पर वापस देने में कैसे समर्थ होऊँगा? आज अवसर हैं, सभी आबाल-वृद्ध आज महोत्सव के लिए नगर के बाहर जायेंगे। पूरा नगर सूनसान हो जायेगा। अतः मैं अर्ध-रात्रि में नगर में प्रवेश करके किसी भी धनिक के घर या दूकान से नकली चाबी का प्रयोग करके ताला खोलकर धन लेकर मेरा ऋण चुका दूँगा, अन्य उपाय नहीं है।" इस प्रकार विचार करके उसी रात्रि में धन के लिए तिराहे-चौराहे, गली-कूचे में घूम रहा था। इस तरह भ्रमण करते हुए भाग्य से उसी सांकेतित स्थान पर आया। वहाँ गवाक्ष के नीचे निसरनी आदि संकेत चिह्न देखकर उस कुबुद्धि के निधान धूर्त ने विचार किया-"आज किसी स्त्री ने किसी जवान के साथ संकेत किया है, ऐसा दिखायी पड़ता है। वह अभी तक नहीं आया है, ऐसा ज्ञात होता है। अतः चोरों के बीच मयूर के न्याय से मैं ही जाता हूँ। देखते हैं, क्या होता है?" इस प्रकार विचार करके गवाक्ष के निचले प्रदेश में जाकर निसरनी हिलायी। उसे प्रकम्पित देखकर प्रिय सखी ने गवाक्ष के नीचे झांका। वहाँ किसी
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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