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________________ धन्य-चरित्र/74 शुद्ध नीति रूपी ज्योत्स्ना से उल्लासित किया। इस प्रकार प्रतिदिन अधिकाधिक कीर्ति और लक्ष्मी से प्रवर्द्धमान धन्यकुमार मंत्री का पद निर्वाहित करते हुए एक बार अपने महल के वातायन में स्थित चतुष्पथ के ऐश्वर्य को देख रहा था। तभी अमावस्या के चन्द्रमा के समान दुर्दर्श, विगलित धनवाले, दारिद्र्य रूपी उपद्रव से पीड़ित, अति दीन दशा को प्राप्त, क्षुधा-तृष्णा से बाधित तनवाले कुटुम्ब के साथ अपने पिता को इधर-उधर नगर में भ्रमण करते हुए देखा। उन्हें देखकर पहचानकर विस्मितिपूर्वक विचार किया विचित्रा कर्मणां गतिः।। अर्थात् कर्मों की गति बड़ी विचित्र है। अनेक कोटि धन-वैभव से युक्त घर को छोड़कर मैं यहाँ आया था, वह सभी इतने से दिनों में कहीं चला गया है, इस प्रकार की दशा को प्राप्त मेरा कुटुम्ब प्रत्यक्ष ही दिखाई देता है। श्री जिनागम में कहा हुआ अन्यथा नहीं होता। जिनागम में कहा है कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि। अर्थात् किये हुए कर्म से छुटकारा नहीं होता। तथाअघटितघटितानि घटयति, सुघटिघटितानि जर्जरिकुरुते ।। विधिरेव तानि घटयति, यानि पुमान् नैव चिन्तयति।। अर्थात् अरचित रचना ही रचित होती है, अच्छी प्रकार से घटित को जर्जर कर देती है। विधि ऐसी ही रचना करती है, जिसके बारे में पुरुष सोच भी नहीं सकता। इस प्रकार विचार कर आदरपूर्वक अपने कुटुम्ब को घर ले जाकर पिता और भ्राताओं को नमस्कार करके स्नान-वस्त्र-भोजन आदि से सत्कार करके यथावसर प्राप्त होने पर पूछा-"पिताजी! बहुत सारा धन, यश और कुशलता से भरपूर आपकी ऐसी अवस्था कैसे हुई? सारी बातें मुझे बताने की कृपा करें।" तब धनसार ने धन्य के वचनों के सुनकर कहा-"हे पुत्र! श्री जिनागम तत्त्व में कुशल होकर भी वैभव-धन के नाश का प्रश्न पूछते हो? लक्ष्मी आदि वैभव मेरा लाभ नहीं था, किन्तु कर्मोदय का लाभ था। चूँकि कर्मोदय दो प्रकार का है-पुण्योदय और पापोदय। जब पुण्योदय होता है, तो बिना चाहे भी जबरदस्ती धन-सम्पदा से घर भर जाता है। जब पाप का उदय होता है, तो सुसंचित और सुरक्षित भी हाथी द्वारा खाये हुए कपित्थ की तरह घर को निस्सार कर देता है, क्योंकि कृतकर्मक्षयो नास्ति कल्पकोटिशतैरपि। अवश्वमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।। अर्थात् सैकड़ों, करोड़ों प्रयत्नों द्वारा भी कृत-कर्म का क्षय नहीं होता है।
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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