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________________ धन्य-चरित्र/73 परीक्षा करने के लिए राजा ने पटह-वादनपूर्वक घोषणा करवायी-"जो बुद्धिमान पुरुष समुद्र नामक सरोवर के मध्य रहे हुए स्तम्भ को स्वयं किनारे पर ही रहते हुए रस्सी से गाँठ लगा देगा, उसे मंत्री पद दिया जायेगा। इस प्रकार की पटह की उद्घोषणा सुनकर बहुत से लोग उस स्तम्भ को बाँधने के लिए उपाय का विचार करने लगे, पर कोई उपाय नहीं सूझा। इस प्रकार के पटह को बजता हुआ देखकर तथा सुनकर धन्य ने आते ही उस पटह को रोककर स्तम्भ को बाँधना स्वीकार कर लिया। तब राजपुरुषों ने कहा-"आप राजसभा में आइए।" तब निर्मल बुद्धिवाला वह धनसार का पुत्र बहुत से लोगों से घिरा हुआ सेवकों के साथ राजा के समीप गया। जाकर राजा को नमस्कार किया। राजा ने भी उस उदार रूप आदि गुणों से युक्त धन्य को देखकर अपने मन में निश्चित कर लिया कि यही श्रेष्ठ पुरुष मेरे आदेश का पालन करेगा। मेरा किया हुआ उद्यम फलवान होता हुआ दिखाई देता है। यह विचार करके राजा ने धन्य से कहा-“हे बुद्धिनिधे! मेरे आदेश को सफल करके अपनी बुद्धि का फल प्राप्त करो और लोगों की कौतुकी इच्छा पूरी करो।" तब सुधी धन्य चण्ड प्रद्योत राजा की आज्ञा प्राप्त करके उस सरोवर के सरस, शाल वृक्षों के समूह से युक्त किनारे पर आया। वहाँ किनारे पर स्थित शाल वृक्ष के मूल को खूब लम्बी रस्सी से बाँधकर पानी के चारों और घूमते हुए स्तम्भ को रस्सी से लपेट दिया। रस्सी के किनारे के बंध-स्थान पर आकर दोनों किनारों को जोड़कर गाँठ देकर बाँधकर एक-एक किनारा पकड़कर पूर्व-पश्चिम दिशाओं में जैसे-जैसे गया, वैसे-वैसे गाँठ स्तम्भ के नजदीक जाती गयी और गाँठ ने स्तम्भ को छू लिया। इस रीति से स्तम्भ में गाँठ देकर राजा के आदेश को सफल किया। __ इन सभी क्रियाओं को नागरिकों व राजा ने देखकर उसके गुण रूपी रज्जु से बंधे हुए मनवाले होकर खूब प्रशंसा की-"अहो! इसकी बुद्धि की पटुता! अहो! इसका प्रतिभा प्रागल्भ्य!" उसके बुद्धि के आलोक से मुदित होते हुए लोगों ने उस बाल सूर्य को प्रणाम रूपी अर्घ्य दिया, क्योंकि उसने अदृष्ट और अश्रुत को पूर्व में कृत की तरह किया। उसके गुण से रंजित राजा ने व दर्शन से मुदित लोगों ने बाल सूर्य को अर्घ्य देने की तरह धन्य को मंत्रीपद दिया। तब उस धन्य मंत्री ने भूपति के सकलाधिक शुचि पक्ष रूप प्रसाद को प्राप्त कर समस्त भूमि मण्डल को अति
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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