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________________ धन्य - चरित्र / 66 कहीं जाती है।" इस प्रकार बहुत तरह से प्रशंसा कर वस्त्र - आभरण आदि द्वारा उसका सत्कार किया। फिर कहा - "हे धन्य ! तुम नित्य ही मेरी सभा में आना । तुम्हारे जैसे सत्पुरुष से ही सभा शोभती है।" सभी मंत्री - सामन्त आदि को भी आज्ञा दी कि जो भी हमारी सभा में शिष्ट- अशिष्ट गत न्याय आदि करने की मंत्रणा हो, वह सभी इस बुद्धि - निधान के आगे निवेदन करके इसके अनुकूल करना । इस प्रकार कहकर धन्य को भेज दिया । धन्य भी राजा द्वारा प्रदत्त वस्त्र - अलंकार आदि को धारण करके राजा द्वारा दत्त वाहन पर आरूढ़ होकर राजा को प्रणाम करके निकल गया। तब राजा ने आतोद्य - वादक, ध्वजा - कारक, बिरुद - पाठक आदि को आज्ञा दी कि रोज महा-आडम्बरपूर्वक धन्य को गमन - आगमन के समय सावधान होकर यावद् घर से लाया व ले जाया जाये। तब धन्य ने राजा द्वारा प्रदत्त महा - आडम्बरपूर्वक नगर के चतुष्पथ से होकर अपने घर आकर माता-पिता को प्रणाम किया। पिता भी उसके इतने बड़े राज्य - सम्मान को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुए । पर उसके तीनों अग्रज विषय-विष से मूर्च्छित हो गये। सम्पूर्ण नगर में धन्य की सर्व न्याय-विदों में मान्यता द्वारा, अपने पुण्य-तप व तेज द्वारा यशः कीर्ति की प्रौढ़ता से मित्र - जन तो पोषित हुए और अमित्र शुष्कता को प्राप्त हुए । राजा का कृपापात्र तथा सामन्त आदि का पूज्य धन्य सभा में बैठा हुआ लोगों द्वारा अपर राजा के रूप को प्राप्त हुआ । इस प्रकार कितना ही समय बीत जाने के बाद एक बार राजसभा से राजा को प्रणाम करके उठता हुआ, दिव्य वस्त्र - आभरण से भूषित, अनेक मणि - मुक्ता - फल- झुम्बनक आदि विचित्र रचना से सुखासन पर अधिरूढ़, अनेक देशों से आये हुए भाटों द्वारा उद्गीर्ण यश से यशस्वी, अनेक सामन्त - श्रेष्ठी-महाइयों के द्वारा विनयपूर्वक प्रणत, मार्ग में दीन-हीन- दरिद्र - जनों के दारिद्र्य को उच्छेदन करनेवाला दान देते हुए, अनेक हाथी-घोड़े-सैनिक व सैन्य से घिरा हुआ, अनेक देशों में उत्पन्न अनारोहित रत्नाभरणों से भूषित, आगे किये हुए घोड़ों के नृत्य से युक्त, पाँच प्रकार के वादित्र के घोषपूर्वक राजमार्ग का उल्लंघन करके धन्य जब अपने घर के नजदीक पहुँचा, तो धन्य के अग्रज अपने-अपने गवाक्षों में स्थित पूर्ण आश्चर्य से देखने लगे । उस अवसर पर नागरिक परस्पर बातें कर रहे थे - "हे लोगों ! देखो-देखो ! पूर्व जन्म कृत पुण्य बल को देखो ! कि यह छोटा होते हुए भी अपने तेज द्वारा
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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