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________________ धन्य - चरित्र / 64 “अन्धः शिरःस्फालनम् विना सरलो न भवति । " अर्थात् अन्धा व्यक्ति सिर फूटे बिना सीधा नहीं होता । हमारे पिता भी रागान्ध होने से कुछ भी नहीं जानते । अतः अब सब जान जायेंगे।" इस प्रकार की बातें बनाते हुए वे तीनों भाई बैठे रहे । इधर धन्य ने राजा के समक्ष उपहार रखे तथा नमस्कार करके राजा के आदेश से यथास्थान बैठ गया । राजा भी उस भाग्यशाली, रूप, वय, चातुर्य - भूषित धन्य को देखकर अत्यन्त प्रसन्नचित्त होकर बोले - " हे धन्य ! तुम्हारे सुखसमाधि तो है ? धन्य ने कहा - " आपके चरणों की कृपा है, क्योंकि प्रजा के सुखों का एकमात्र कारण राजा होता है। माता-पिता तो केवल जन्मदायक होते हैं, उसके बाद के सभी सासांरिक सुखों का अनुभव तो राजकृपा से ही होता है। आज तो मेरा महान भाग्योदय हुआ है कि महाराज ने महती कृपा करके मुझे याद किया है। इससे मेरे सुखों पर परम सुख प्राप्त हुआ है। कुछ भी कमी नहीं रही । " धन्य के इस प्रकार के प्रति वचनों को सुनकर राजा अत्यधिक सन्तुष्ट हो गया । पुनः धन्य से कहा - "हमारे जहाज के माल से तुमने भी कोई भाग ग्रहण किया या नहीं?" तब धन्य ने कहा- "महाराज की जैसे शिशु के ऊपर कृपा है, वैसा ही भाग भी मैंने प्राप्त किया है।" राजा ने पूछा - " -"कैसे?" तब धन्य ने आमूल-चूल सारी घटना राजा को निवेदन की कि वस्तु को नहीं पहचान पाने से यह कुत्सित है इस प्रकार निश्चित करके तथा मुझे बालक जानकर मेरे सिर पर मिट्टी डाल दी। मूल्य भी उन्होंने ही निश्चित किया । मैंने तो उस वस्तु को गुरु कृपा से पहचानकर मौन रहकर उन्होंने जो दिया, उसे ही प्रामाणिक रूप से ग्रहण किया। इस रीति से मैंने जहाज में रहा हुआ भाग प्राप्त किया। उस भाग में रही हुई तेजमतूरी बहुत सारी मेरे घर में है । इससे आगे तो आपकी आज्ञा ही प्रमाण है ।" - इस प्रकार धन्य के अवितथ व्यतिकर को सुनकर राजा ने हँसकर सभ्य-जनों से कहा- "देखो! संसारी लोगों की पर - सुख से ईर्ष्या - दोष की प्रबलता को देखो। अपने अज्ञान से वस्तु-गुण से अनजान तथा स्वार्थ को असाधक जानकर कपट - रचना रचकर धन्य के सिर पर डाल दी। उस समय तो उन्होंने निश्चित कर लिया होगा कि इस कुत्सित वस्तु को यह अज्ञ बालक ग्रहण कर लेगा। अगर इसके पिता आये होते, तो वे तो इसे ग्रहण ही नहीं करते। अच्छा
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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