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________________ धन्य-चरित्र/53 रुद्राचार्य पाटलिपुत्र जाने के लिए व्यवस्था करने लगे। जिस प्रकार चतुर मल्ल और चतुर राजा जीतने की इच्छा से अपनी जाति के विपक्ष को सुनकर उसे निकालने के लिए विलम्ब नहीं करते, शीघ्र ही जाकर निरुत्तर कर देते हैं, उसी प्रकार जब अतिशीघ्र रुद्राचार्य जाने के लिए प्रवृत्त हुए, तब छींक आदि अत्यधिक अशुभ अपशकुनों के द्वारा उन्हें रुकना पड़ा। अतः रुद्रचार्य ने स्वयं का जाना तो स्थगित कर दिया, क्योंकि बहुश्रुता निमित्तद्वेषिणो न भवन्ति । अर्थात् बहुश्रुत निमित्त-द्वेषी नहीं होते। फिर वादी-वृन्द के दमन में समर्थ बन्धुदत्त मुनि को उस दुर्वादी को जीतने का आदेश दिया, मानो प्रभात में अंधकार रूपी शत्रु का हनन करने के लिए अरुण को आदेश दिया गया हो। तब बन्धुदत्त मुनि रुद्राचार्य के आदेश को प्राप्त करके पाटलिपुत्र के लिए रवाना हुए। अविच्छिन्न रूप से चलते हुए पाटलिपुत्र पहुँचे। परवादियों द्वारा अधिष्ठित राजसभा को प्राप्त हुए। उस राज सभा में मुनि को आया हुआ सुनकर व देखकर वाद-वदन-कौतुक को देखने के लिए हजारों लोग इकट्ठे हो गये। तब भाग्य से एक जगह प्राप्त सत्-तत्त्व-विवेकी व संकीर्ण बुद्धिवाले दोनों के ही अभिमत गुण-दोषों को तथा तत्त्व को जाननेवाले बहुत सारे सभ्य-जन भी सभा में आये। दुर्नय को परास्त करनेवाला अति निपुण गुणानुरागी राजा भी सिंहासन के मध्य आसीन हुआ। इस प्रकार चतुरंगी सभा के सम्मिलित हो जाने पर पहले सौगत मत का आलम्बन लेकर भिदुर नामक वादी ने तर्क सहित युक्ति जाल बिछाया। "जैसे-जो सत् है, वह सभी क्षणिक है। जैसे-दीप ज्वाला का समूह । सम्पूर्ण भाव सत् हैं, अतः क्षण भर में नष्ट होनेवाले हैं।" भिदुर वादी द्वारा अपने पक्ष की स्थापना के लिए कृत प्रतिज्ञा आदि से विरत होने के बाद स्याद्वाद-वदन में कोविद, बुद्धिनिधान बन्धुदत्त मुनि ने उसको उत्तर देने के लिए जोरदार न्याय पटली को कहा-"जो सत् है, वह कभी क्षणिक नहीं होता। क्योंकि यह वही है-इस प्रकार की स्थिरता के बल से उत्पन्न सत्तामात्र बल से उद्भव होनेवाली अविसंवादिनी प्रत्यभिज्ञा आपके ही अनुमान से बाधित होती है। तत् शब्द पूर्व परामर्शकारी पूर्वानुभूत स्वरूप सत्ता का ग्राहक होता है। अगर सत्ता-ग्राहकता नहीं होती, तो वहाँ यह वही है-इस प्रकार की प्रत्यभिज्ञा नहीं होती।" यह उत्तर सुनकर पुनः भिदुर ने कहा-"तो फिर स्व केश आदि के छिन्न
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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