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________________ धन्य-चरित्र/45 क्रोध तथा द्वेष रूपी वृक्षों के फलों की उपमावाले सहस्र दुःखों के समूह को बार-बार व बहुत तरह से प्राप्त किया। अतः सहेतुक या निर्हेतुक किसी भी प्रकार की ईर्ष्या सुख के लिए नहीं होती। सर्वप्रथम तो ईर्ष्या के आवेश-मात्र से हृदय जलता है। उसकी चिंता से रस व धातुएँ भी जलती है। कौवच नामक वनस्पति की लता का आलिंगन क्या किसी के सुख के लिए होता है भला? बल्कि होता ही नहीं। इसलिए हे पुत्रों! अति पाप के उदय से उत्पन्न दुःसह दुःखों को फोड़ने का तुम्हारा मन है, तो ईर्ष्या दोष को छोड़कर सद्गुण के पक्षपात को भजो।" इस प्रकार बहुत प्रकार से शिक्षित करने पर वे तीनों पुत्र बाह्य रूप से कुछ सरलता दिखाने लगे। || इस प्रकार श्री तपागच्छाधिराज श्री सोमसुंदर आचार्य के पट्ट-प्रभाकर शिष्य श्री जिनकीर्ति सूरि द्वारा विरचित पद्य - बंध श्री धन्य-चरित्रवाले श्री दान कल्प वृक्ष का महोपाध्याय श्री धर्म सागर गणि के अन्वय में महोपाध्याय श्री हर्षसागर गणि के प्रपौत्र महोपाध्याय श्री ज्ञानसागर गणि शिष्य की अल्प मति द्वारा ग्रथित गद्य-रचना-प्रबन्ध में लक्ष द्वय अर्जन नामक द्वितीय पल्लव पूर्ण हुआ।। तृतीय-पल्लव धनसार श्रेष्ठी द्वारा शिक्षित किये जाने पर भी, नीति-मार्ग की युक्तियों से युक्त भी शिक्षा की युक्तियाँ ज्वाला से ज्वलित अन्तःकरण को, मेघ की धारा से मुद्ग शैल की तरह जड़ता रूपी आग्रह को बढ़ानेवाली सिद्ध हुई। उन तीनों पुत्रों ने पुनः एक बार पिता से कहा-"हे तात! आप हमें शिक्षा देने के लिए उद्यत हैं। पर अपने चित्त में विचार तो करिए कि शर्त करके दो लाख द्रव्य उपार्जित किया, वह जुआ ही है, व्यापार की कला नहीं। हम जुए के व्यसन में कुशल धन्य की गुण-श्लाघा को कैसे सहन कर सकते हैं? जो व्यक्ति व्यापार–क्रिया द्वारा द्रव्य उपार्जित करता है, हम तो उसी की प्रशंसा करते तथा सुनते हैं। द्यूत-कला से तो कदाचित् ही लाभ होता है, पर हानि तो सर्वकाल में होती है। कुलीनों के लिए द्यूत-व्यवसाय अनुचित है। कदाचित् भीलों का बाण सरल गति को प्राप्त हो जाये, तो उससे क्या? व्यापार–क्रिया से ही परीक्षा सुभग होती है, छल आदि क्रिया से नहीं।" इस प्रकार उन पुत्रों द्वारा की हुई वक्रोक्ति को सुनकर पुनः भाग्य की
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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