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________________ धन्य-चरित्र/44 की रचना नहीं होती, तो मेरी प्रसन्नता का वस्तुतः क्या फल प्राप्त होता? मेघ द्वारा बरसने पर भी यदि पृथ्वी अंकुरों से पूरित नहीं होती, तो बादल की क्या महिमा? यह लीलाधारिणी देवी दण्ड के सर्वथा योग्य नहीं है। इस पंकप्रिय की व्याधि सर्वथा अपरिहार्य है। अतः यह पंकप्रिय भले ही खुशी-खुशी वन में जावे । लेकिन इसके वचन-मात्र अपराध से रानी तिरस्कार के योग्य नहीं है।" इस प्रकार विचार करके राजा द्वारा निकाला गया पंकप्रिय पुनः जंगल में चला गया और पहले की तरह कुटिया में रहने लगा। इस प्रकार कितना ही काल बीत जाने के बाद एक बार उस वन में रात्रि में अत्यधिक भयंकर बाघों की दहाड़ सुनकर भयभ्रान्त शरीरवाला, अन्यत्र कहीं न जा पाने के कारण संकुचित अंग करके पंकप्रिय नरक-उत्पत्तिवाले स्थान के समान खुदी हुई भूमि में बनी हुई पत्थर की कुम्भिका में जल्दी-जल्दी प्रवेश करके मरण के भय से जैसे-तैसे अंगों को मरोड़कर रात्रि व्यतीत की। सवेरा होने पर म्लान मुख से आकुंचन-प्रसारण रहित अंगों में जड़त्व का प्रसार हो जाने से अंगों को मोड़ने में समर्थ नहीं हो पाया। अतः उस गर्त से बाहर नहीं निकल पाया। अंग-प्रत्यंग को मोड़ने से तीव्रतर वेदना से मरण दशा को प्राप्त होता हुआ दो गाथाओं को अपने परिपार्श्व में लिखकर मर गया। पिता के वन-गमन के समाचार प्राप्त होने पर जब पुत्र उस वन में आये, तो बार-बार खोजने पर उन्हें अपने पिता मृतावस्था में उस कुम्भी में प्राप्त हुए। उनके परिपार्श्व में ये दो गाथाएँ लिखी हुई मिलीं वग्घभएण पविट्ठो, छुआहआ निग्गमम्मि असमत्थो। अट्टवसट्टोवगओ, पुत्तय ! पत्तो अहं निहणं। इहलोगम्मि दुरंते, परलोग-विवाहगे। मय वयणेणं पावे, वज्जेजा पुत्तया! अणक्खे ।। "अर्थात् व्याघ्र के भय से मैं इस कुम्भी में प्रविष्ट हुआ और क्षुधा से आहत, निकलने में असमर्थ मैं आर्त्त-ध्यान के वश होकर हे पुत्रों! निधन को प्राप्त हुआ। इस लोक में दुरन्तकारी तथा परलोक में बाधा रूप दुःख विपाकवाली पाप रूपी ईर्ष्या को हे पुत्रों! तुम लोग मेरे वचन से छोड़ देना।" इस प्रकार हितोपदेश के रहस्य से युक्त भूत पदार्थ की साक्षी रूप दोनों गाथायें पढ़कर तथा मन में धारण करके वे पंकप्रिय के पुत्र धर्म व नीति में तत्पर बने। धनसार ने तीनों पुत्रों को यह दृष्टांत सुनाकर इसके माध्यम से शिक्षा दी-"उस पंकप्रिय कुम्भकार ने ईर्ष्या दोष के कारण इस भव व पर भव में
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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