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________________ धन्य-चरित्र/29 था ।। स्वस्ति श्री।। प्रतिष्ठानपुर पत्तन में सार्थ-स्थान से मित्र नामक व्यापारी प्रीतिपात्र व क्षेमपात्र अपने परम मित्र महेश्वर के प्रति विस्तार-पूर्वक लिखता है। प्रणाम बंचना। यहाँ सब कुशल है। आपकी कुशलता का पत्र भेजना। जो जरूरी कार्य है, वह अब कहता हूँ-"उत्तर पथ से बादल की तरह उन्नत सार्थवाह अगणित माल भरी गाड़ियों के साथ आया है। पुनः वहीं जाने की इच्छा है। हे बन्धु! भेंट में आया हुआ, दारिद्र्य को दूर करनेवाला बहुत सारा माल महा-इभ्यवाले उस सार्थपति के पास है। और भी, यह सार्थवाह किसी कारण से स्वल्प लाभ होने पर भी अपने माल को कैसे भी बेचकर स्व-स्थान जाने को उत्सुक है। इस कारण से हे मित्र! तुम शीघ्र ही उस सार्थवाह के सम्मुख जाकर माल का करार कर लो। तुझे बहुत लाभ होगा। इस प्रकार के व्यतिकर गर्भित लेख मैंने पहले बहुत सारे लिखे, पर तुमने एक भी पत्र का जवाब नहीं दिया या फिर मेरे द्वारा लिखित एक भी लेख तुम्हारे हाथ में स्वर्ण-निधि की तरह प्राप्त ही नहीं होता। अतः अब तो तुम्हे शीघ्र ही आना चाहिए। इस प्रकार मन में लेख के अर्थ को पढ़कर और अवधारण करके अनार्य की तरह प्रभात में भी क्षुधा-पीड़ित की तरह चित्त में इस तरह विचार करने लगा-"भाग्य से अगणित माल से आढ्य सार्थ नजदीक आ गया है, पर अभी तक व्यवसाय में अग्र-मुखिया, नगर के व्यापारियों में से किसी को भी ज्ञात नहीं है। अतः क्षुधात मैं पहले घर जाकर, खाकर स्वस्थ चित्त हो जाऊँ, क्योंकि स्वस्थे चित्ते बुद्ध्यः सम्भवन्ति। स्वस्थ चित्त में ही बुद्धि सम्भवित है। न्याय से बुद्धि-साध्य माल होता है। बाद में दूरतर जाकर सार्थवाह का जोत्कार आदि शिष्टाचार करके एकाकी ही सम्पूर्ण माल ग्रहण कर लूँगा। इस माल को खरीदने पर पुनः बहुत लाभ होगा, क्योंकि इस बाजार में इस प्रकार का माल किसी के भी पास नहीं है।" इस प्रकार विचार करके वह महेश्वर नौकर को कहकर भोजन के लिए चला गया, क्योंकि उत्सर्ग-अपवाद मार्ग की तरह सभी को क्षुधा बाधित करती ___ तब महेश्वरों के बाजार में स्थित धन्य ने अति-स्वच्छ भूर्ज-पत्र में स्पष्ट रूप से प्रतिबिम्बित वर्णावलि को गुप्ताकार में होने पर भी तीक्ष्ण बुद्धि से पढ़कर विचार किया-"अहो! इस विचार-मूढ़ की मूर्खता! मित्र के द्वारा रहस्य ज्ञापित
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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