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________________ धन्य - चरित्र / 27 कौए का कालापन अलौकिक है, हँस में शुक्लता स्वाभाविक स्थिति रूप है । पर दोनों की गम्भीरता में महान अंतर है - ऐसा वचनों में जो भेद है, वह क्यों कहा जाता है? इतने विशेषणों के रहते हुए भी जहाँ यह भेद देखा जाता है, तो वहाँ कौन कौआ और कौन हँस शिशु है ? ऐसे कथन को नमस्कार हो । हे तात! आपके द्वारा ही हमें प्रौढ़ पद पर स्थापित किया गया है और अब आप ही महा-इभ्यों के आगे धन्य - कुमार का ही गुण - वर्णन करते हैं, जिससे हमारी निंदा होती है । धन्य की प्रशंसा करने से हमारी लघुता होती है । जैसे कि तुला के एक पलड़े को भारी करने से दूसरा पलड़ा हल्का हो ही जाता है। हे तात! सभी पुत्रों पर आपका समान वात्सल्य होना चाहिए। जैसे कि सभी तटवर्ती वृक्षों को नदी समान जल से सिंचित करती है । पुत्रों में समान गुणों की स्वीकृति से ही पिता उचित जाननेवालों की पंक्ति में आते हैं। जैसे कि सभी महाव्रतों का विधिपूर्वक समान पालन करने पर प्रतिरेखा को प्राप्त हुआ जाता है। हे तात! आपने धन्य में ऐसी क्या अधिकता देखी है और हममें ऐसी क्या न्यूनता देखी है, जो कि अहर्निश देवता की तरह धन्य के गुणों का ही वर्णन करते हैं? हे तात! यदि हम चारों भाइयों में स्नेह भाव की वृद्धि चाहते हैं, तो आज के बाद धन्य की प्रशंसा रूपी अग्नि को प्रज्ज्वलित नहीं करेंगे। समान दृष्टि से हम सभी को देखेंगे ।" पुत्रों के इस प्रकार के वचनों को सुनकर धनसार ने अपने कुपित पुत्रों से कहा - " हे पुत्रों! तुम लोग गडुल जलाशय की तरह मलिन आशयवाले हो । मेरे समान निर्मली फल के सहयोग से अब स्वच्छ हो जाओ। हे पुत्रों! हँस की तरह ही उभय पक्ष की पवित्रता में कहीं भी मेरी सद्-असद् की अभिव्यक्ति में क्या मूढ़ता देखी है? ग्वाल से भूपाल तक सभी लोगों के समूह में मेरी सुसमीक्षित-कारिता विख्यात है। अतः परीक्षण में कुशल मेरे द्वारा इसमें रहे हुए गुणों की ही स्तुति की जाती है। यदि गुणवान मनुष्यों के गुणों के प्रति मौन रहा जाये, तो हमें प्राप्त वाणी ही निष्फल है। इस कारण से पुत्र की स्तुति निषिद्ध होने पर भी मैं इस गुणी की स्तुति करता हूँ । हे पुत्रों! पहले हमारे घर में उतनी लक्ष्मी नहीं थी, जितनी की धन्य के पैदा होने के बाद हुई है। इसीलिए धन - वृद्धि का कारण धन्य ही है, यह अन्वय- व्यतिरेक से जाना जा सकता है । हे पुत्रों ! जैसे चन्द्र का उदय समुद्र की लहरों की वृद्धि के लिए ही होता है, सूर्योदय से ही कमलों का विकास होता है, वसंत ऋतु ही फूलों के
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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