SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धन्य-चरित्र/311 सभी राज व्यवस्था करके, महा-विभूति से युक्त होकर श्री जिनेश्वर भगवान के चरण-कमलों को नमन करके वीर्य के उल्लास के साथ चारित्र ग्रहण किया। फिर ग्रहण व आसेवन शिक्षा के द्वारा निर्दोष चारित्र की आराधना करके घनघाती कर्मों का क्षय करके, केवलज्ञान उत्पन्न करके, अनेक भव्य-जीवों को प्रतिबोधित करके, अनशन करके समस्त कर्म-मल को दूर करके मोक्ष चले गये। || इस प्रकार दान आदि के द्वारा त्रिवर्ग को साधने में अग्रणी केरल-भोगदेव का तथा धनदेव का सम्बन्ध पूर्ण हुआ।। इसलिए हे भव्यों! एक मात्र पुण्य से बाँधी जानेवाली, संसार रूपी आवर्त में गिरानेवाली, अत्यधिक तृष्णा को बढ़ानेवाली, राज-भय, चौर-भय, अग्नि तथा जलादि भय से व्याप्त, भय रूपी समुद्र में डूबते हुओं के लिए शिला के समान, अठारह प्रकार के पापों के सेवन को तथा दम्भ, महा-आरम्भ आदि को उपार्जित करनेवाली, समस्त अविरति आदि दोषों की एक मात्र खान, दुर्जन-चरित्र के स्वभाववाली, अत्यन्त क्लेश से साध्य गूढ़ घात करनेवाली ऐसी लक्ष्मी को प्राप्त करके कौन बुद्धिमान हर्ष को प्राप्त करेगा? क्योंकि जीव अनेक पापों के द्वारा परदेश-गमन, भूख-प्यास आदि सहन करने रूप अनेक क्लेशों के द्वारा धर्मअधर्म की विचारणा में जड़ होते हुए लक्ष्मी को उपार्जित करने के लिए प्रतिदिन पुरुषार्थ करते हैं, पर यदि पूर्वकृत पुण्य का उदय होता है, तो ही वह लक्ष्मी मिलती है, अन्यथा तो मन-वचन-काया के द्वारा अत्यन्त खेदित होते हैं। अगर कभी पूर्व-पुण्य के उदय से लक्ष्मी मिल भी जाती है, तो उसके संरक्षण में होनेवाले रौद्र ध्यान आदि में प्रवर्तित होता है, जिससे नरक रूपी अन्धकूप में ही गमन होता है। __ इस प्रकार प्राणी पाप रूपी कुटुम्ब के पोषण की भ्रांति से अत्यधिक धन इकट्ठा करके मर करके अधोगति में उत्पन्न होता है। उसके बाद पुण्यहीन पुत्रादि के हाथों से अचिन्तित किन्हीं शत्रुओं के द्वारा लक्ष्मी का हरण कर लिया जाता है। उस लक्ष्मी के द्वारा वे लोग जो कुछ भी पाप-कर्म करते हैं, उन सभी का विभाग परभव में गये हुए जीव को अवश्य ही लगता है। अतः इस लोक में तथा परलोक में दुःख का एकमात्र कारण लक्ष्मी ही है। उसके मिलने से कौन प्रमुदित हो? यदि सद्गुरु के कथनानुसार इस लक्ष्मी को काशदण्ड से इक्षु की तरह सप्त-क्षेत्रों में बोया जाये, तो वह संस्कारित किये हुए विषय की तरह सकल इष्टों का एक मात्र कारण होती है। जैसे रूप्य जल में डूब जाता है, पर रूप्य का पात्र तो तैरता रहता है, उसी प्रकार लक्ष्मी भी रूपयों के आकार में व्यय किये जाते हुए संसार सागर से उतरने में नौका के
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy