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________________ धन्य-चरित्र/278 को जीतकर चित्त की प्रसन्नतापूर्वक त्यागभोगादि में धन-विलास करने लगे। धन्य ने बड़े भाइयों से मालव-मण्डल में पिता आदि के निवास करनेवाले ग्रामादि का पता पूछकर अपने विश्वस्त प्रधान पुरुषों को अनेक अश्व, रथ, सेना आदि परिकर से युक्त वहाँ भेजकर अत्यधिक बहुमानपूर्वक अपने माता-पिता तथा तीनों भाभियों को बुलवा लिया। राजगृह के उपवन में आया हुआ जानकर महान विभूति के द्वारा चारों भाइयों ने सम्मुख जाकर माता-पिता को नमन करके दान-मान आदि करते हुए महोत्सवपूर्वक नगर में प्रवेश करवाया। महा-भक्तिपूर्वक घर पर ले जाकर भव्य आसन पर बिठाकर चारों ही भाइयों ने चार पुरुषार्थों की तरह पिता को नमन किया। फिर तीनों बड़े भाई कहने लगे-“हे पिताजी! इतने दिनों तक आपकी हितशिक्षा के वचनों को हमने स्वीकार नहीं किया, बल्कि कल्पवृक्ष के समान भाई पर हमने मत्सर-भाव धारण किया। उस द्वेष रूपी दोष के कारण हमने बार-बार दुःखों की परम्परा भी प्राप्त की। देवों ने हमें प्रतिबोधित किया, जिससे हमारे हृदय में रहा हुआ अज्ञान नष्ट प्रायः हो गया है। अभी तो इसी के भाग्य-बल से सुख-सम्पत्ति को भोग रहे हैं। हमने आपकी आज्ञा-भंग का जो अपराध अब तक किया है, उसे माफ करें। आप तो क्षमा के सागर हैं, अतः अवश्य ही क्षमा प्रदान करेंगे।" धन्य ने भी सभी घर, धन, सम्पत्ति आदि पिता को सौंप दी। स्वयं निश्चिंत होकर माता-पिता आदि की भक्ति करने लगा, क्योंकि उदारता और पितृ-भक्ति महान कुल-व्रत है। इस प्रकार समस्त नगर में धन्य के गुणों का वर्णन फैलने लगा। राजा ने भी पुत्रों सहित धनसार को बुलाकर वस्त्राभूषणों के द्वारा सत्कार करके बहुमान किया। इस प्रकार माता, पिता व भाइयों से युक्त राज-जामाता गुणराशि के द्वारा समस्त लोगों का मान्य होता हुआ पूर्ण सौख्य का अनुभव करने लगा। इस प्रकार प्रतिदिन धन-धान्य, ऋद्धि-समृद्धि से युक्त प्रवर्धमान यश-कीर्ति आदि के द्वारा कितने ही काल के बीत जाने के बाद एक बार राजगृह नगरी के उपवन में पाप के अंधकार को दूर करते हुए और विश्व के पदार्थों को ज्ञान रूपी सूर्य से प्रकाशित करते हुए सूर्य के समान तेजस्वी आचार्य धर्मघोष सूरि अपने शिष्य वृन्द से परिवृत वहाँ पधारे। गुरु आगमन को सुनकर भक्ति के साररूप धनसार आदि नागरिक-जन प्रमाद का त्याग करके स्पृहा-रहित होकर गुरु को नमन करने के लिए गये। पाँच अभिगम-युक्त वंदन- विधि आदिपूर्वक गुरु ने भी उनकी श्रवण-जिज्ञासा को जानकर चतुर्गति के क्लेश-समूह का निवारण करनेवाले चार प्रकार के धर्म का उपदेश देना शुरू किया। जैसे- कभी
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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