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________________ धन्य-चरित्र/230 राजा ने पूछा-"कैसे?" उन्होंने कहा-"बनावटी वस्त्र-बाँस आदि के अंगोपांग से युक्त अन्दर से खोखला हाथी बनाया जाये। अन्दर में पाँवादि के खाली स्थान पर सैनिक रखे जायें। अन्दर में रहे हुए उनके द्वारा सच्चे हाथी की तरह वृक्ष के पत्तों आदि को कुचलते हुए मंद-मंद गति से गमन-क्रिया को करते हुए इस झूठ-मूठ के हाथी को वन में घुमाया जाये। तब वनचरों के मुख से हाथी के आगमन को सुनकर गज-व्यसनी वह राजा शीघ्र ही उठकर अकेले ही वहाँ आकर हाथी को वश में करने के लिए वीणा-वादन करते हुए गीत गायेगा। उसी समय कृत्रिम हाथी के भीतर छिपे हुए हमारे सुभटों के द्वारा गज-भ्रमणादि माया को दिखाकर उसे अपने निकट लाने के लिए आकर्षित किया जायेगा। तब अपने विषय के लिए आया हुआ जानकर सहसा निकलकर उसे बाँधकर शीघ्र ही यहाँ ले आयेंगे। यहाँ आ जाने पर वस्त्र-आसनादि के दानपूर्वक उसे प्रसन्न कर लेंगे। उसके बाद वह राजकुमारी को संगीत-कला सिखायेगा।" इस प्रकार मंत्रियों के द्वारा उपाय बता दिये जाने पर राजा ने भी ऐसा ही करने को कहा। सचिवों ने उस प्रकार की सभी रचना करके कौशाम्बी के निकट के उपवन में माया-गज को रख दिया। वह गज छिपे हुए सैनिकों के द्वारा इधर-उधर परिभ्रमण कराया जाने लगा। अन्य भट दूसरे वेश में दूर जाकर स्थित हो गये। तब उस मायागज को दूर से ही परिभ्रमण करते हुए देखकर असत्य को भी सत्य मानकर वनचरों ने जाकर उदायन राजा से निवेदन किया। वह भी सुनने मात्र से ही अकेला ही उठकर उस गज को बंदी बनाने के लिए वहाँ आ गया। दूर से ही उस विशालकाय हाथी को देखकर गाते हुए और वीणा को बजाते हुए उदयन हाथी के निकट जाने लगा। हाथी भी वृक्षों व पत्तों को कुचलना छोड़कर राग से आकृष्ट की तरह धीरे-धीरे पग-न्यास करते हुए और मस्तक को हिलाते हुए सम्मुख आने लगा। उस हाथी को अनुकूल देखकर विचारने लगा-“मेरी गीत-कला से आकृष्ट होकर यह मेरे सम्मुख आ रहा है। अतः क्षण-मात्र में ही वश में करके बाँध लूँगा।" इस प्रकार विचार करते हुए प्रसन्नतापूर्वक गाते हुए जब तक हाथी के निकट पहुँचाता, तब तक तो अचानक हाथी के अन्दर रहे हुए भटों तथा दूर पर स्थित भटों के द्वारा बाहर निकलकर उसे पकड़कर वनकुंज के अन्दर छिपाकर रखे गये रथ में बाँधकर डाल दिया। जात्य-अश्वों को जोड़कर रथ को दौड़ाया। प्रेरित किये गये अश्व आधी घड़ी में ही एक योजन मार्ग को पार कर गये। उदयन तो यह क्रिया-कलाप देखकर विचार करने लगा-"अहो! कर्मों की गति
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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