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________________ धन्य-चरित्र/179 सुनिए जिस पुत्र की जिस वस्तु के व्यवहार में मति अधिक है, उस पुत्र के लिए सुख के एकमात्र हेतु रूप से उस-उस कार्य के लिए नियुक्त किया गया है। उस व्यापार की क्रिया में लगाया गया द्रव्य उसी पुत्र को दिया है। बही आदि जो वस्तुएँ बड़े पुत्र के कुम्भ मे प्राप्त हुई, इस का अर्थ यह है कि ब्याज के अंतर्गत रहा हुआ द्रव्य बड़े पुत्र को दिया गया है, क्योंकि उसके कार्य के लिए बड़ा पुत्र ही समर्थ है। यह प्रथम पुत्र के हिस्से का धन हुआ। जिसके कुम्भ में सेतु-केतु को पैदा करनेवाली मिट्टी निकली, उस पुत्र के उस वाणिज्य में कुशल होने से मिट्टी के संकेतपूर्वक धान्य के कोष्ठागार तथा खेत उसको दिये हैं। उस व्यापार में रहा हुआ द्रव्य बड़े पुत्र को दिये गये धन के तुल्य ही है। यह दूसरे पुत्र के हिस्से का विभाग हुआ। जिसके कुम्भ में गज-हस्ती आदि की अस्थियाँ निकलीं, उसको गज-अश्व-गाय-भैंस आदि चतुष्पद में कुशल ज्ञानी जानकर तीसरे पुत्र को समस्त चतुष्पद का धन दिया है। यह तीसरे पुत्र का विभाग हुआ। जिसके कुम्भ में रत्न-हिरण्य-सुवर्णादि निकला है, उसे छोटा होने से व्यापार क्रिया में अयोग्य जानकर उसी कारण से उसे रोकड़ा धन दिया। यह चौथे पुत्र का विभाग हुआ। इस आशय से आपके पिता ने उस-वस्तु का संकेत किया है। अतः अपने-अपने मन में विचार कीजिए कि उस-उस संकेतित व्यापार मे द्रव्य संख्या का हिसाब लगाने पर सभी पुत्रों को आठ–आठ करोड़ सुवर्ण दिया है। अतः अगर पिता के आशय-सूचक की मेरे वचनों में प्रमाणता है, तो अपने-अपने मन में विचार कर उत्तर देवें।" __ इस प्रकार कहकर धन्य बैठ गया। तब बड़े भाई ने अपने मन मे विचार कर कहा-"मेरे ब्याज आदि द्रव्य की वृद्धिवाले व्यापार मे हमेशा आठ करोड़ सुवर्ण लभ्य रहता है।" अद्वितीय मतिवाले द्वितीय पुत्र ने भी कहा-"मेरे भी सेतु, केतु, धान्य-कोष्ठागार आदि के द्वारा धन की संख्या लगभग बड़े भाई की द्रव्य-संख्या जितनी ही रहती है।" तीसरे पुत्र ने कहा-“मेरे भी घोड़ों की संख्या दस हजार, हाथियों की सौ, गोकुलों की सौ, ऊँटों की आठ हजार तथा भैंस-बकरी आदि भी बहुत सारे हैं। उन सभी के मूल्य की गणना करने पर आठ करोड़ ही होता है।" इस प्रकार उनके वचनों को सुनकर राजा और सभासद विस्मित्त-चित्तवाले होते हुए मस्तक धुनते हुए धन्य की बुद्धि के कौशल्य का वर्णन करने लगे। तब चारों को राजा ने पूछा-"तुम लोगों का विवाद खत्म हुआ? निःसन्देही हुए?" उन्होंने भी हाथ जोड़कर कहा-“स्वामी! आप चिरकाल तक सुखी होओ।
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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