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________________ धन्य - चरित्र / 140 था। उसकी अत्यधिक वीरता की प्रकर्षता से तलवार और शत्रु वर्ग-दोनों ही समान रूप से म्यान के अन्दर ही रहते थे। उस राजा के भाण्डागार में सहस्रकिरण नामकी मणि थी। यह मणि परम्परा से पूर्वजों द्वारा कुलदेवता की तरह सर्वदा पूजी जाती थी। एक बार राजा उस मणि की पूजा करते हुए विचारने लगा - यह मणि परम्परा से पूर्वजों द्वारा पूजित है, अतः हम भी यथाविधि इसकी पूजा करते हैं, परन्तु इसका महात्म्य क्या है- यह हम नहीं जानते हैं । " ऐसी जिज्ञासा से सेवकों द्वारा रत्न परीक्षा करनेवाले जानकारों को बुलवाकर पूछा- 'हे रत्नवणिकों! हमारे पूर्वजों द्वारा यह मणि बहुत द्रव्य का व्यय करके भी यथाविधि पूजी जाती रही है । अतः हम भी इसकी नित्य पूजा करते हैं। पर इसके गुणों को हम नहीं जानते हैं। इसलिए इसके गुणों का आप कृपा करके वर्णन करें। " इस प्रकार पूछने पर वैसे शास्त्र के तात्पर्यार्थ ज्ञान का अभाव होने से वे गुणी पुरुष जंगली जाति के मनुष्यों की तरह उस मणि के गुणों का स्पष्ट वर्णन करने में समर्थ न हो सके । तब राजा ने सेवकों द्वारा पटह - उद्घोषणा करवायी - 'जो निपुणों में अग्रणी पुरुष इस प्रधान मणि के प्रत्यक्ष कारणपूर्वक गुणों को कहेगा, उसे सत्य - प्रतिज्ञ राजा पाँच-500 की संख्या में ग्राम - हाथी-घोड़े आदि प्रदान करेगा तथा अपनी पुत्री सौभाग्यमंजरी भी देगा ।" इस प्रकार राजा की आज्ञा से कौशाम्बी के प्रत्येक चौराहे और प्रत्येक मार्ग पर परीक्षक को प्राप्त करने के लिए पटह घूमने लगा । इसी समय धन्य ने पटह-वादकों द्वारा बजाये जाते हुए पटह की आवाज को सुनकर कहा - 'हे पटह - वादकों ! पटह को मत बजाओ । मणि के गुणों को मैं कहूँगा।” इस प्रकार पटह का निवारण करके परीक्षक - शिरोमणि धन्य पटहह-वादकों के साथ राजा के पास सभा में गया। राजा को नमन करके यथास्थान बैठा । वत्सराज ने भी उसके सौभाग्य से भी अधिक सुन्दर रूप को देखकर और सुन्दर आकृति को लखकर बहुमानपूर्वक कुशल वार्ता पूछकर धन्य को कहा- 'हे बुद्धिनिधान! इस रत्न का परीक्षण करो और इसके गुणों को स्पष्ट करो। " तब राजा के आदेश को पाकर धन्य भी उस मणि को हाथ में लेकर शास्त्र से परिकर्मित बुद्धि द्वारा उसके गुणों को जानकर राजा से सविनय कहा - 'महाराज ! चित्त में विस्मय उत्पन्न करनेवाले इसके प्रभाव को कहता हूँ, वह सुनिए - स्वामी ! इस मणि को जो पुरुष अपने मस्तक पर धारण करता है, उस पुरुष को हनने के लिए सिंह-गज की तरह शत्रु समर्थ नहीं होते। यह मणि जिस नगर के अन्दर शोभित होती है, उस नगर में अतिवृष्टि - अनावृष्टि प्रमुख ईतियाँ सुराजा में अनीतियों की
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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