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________________ धन्य-चरित्र/6 हैं। यह संसार तो कचरे के ढेर के समान है, उसमें सुगन्ध के समान हे गुरु! आप कहाँ हो? किसी ने ठीक ही कहा है कि यादृशः उदयस्तादृशः भवत्येवेति जिनाज्ञा। अर्थात् कर्मों का जैसा उदय होता है, वैसा होता ही है और यही जिनाज्ञा है। कर्मोदय में चिन्ता करनेवाला मूर्खराज जानना चाहिए। बन्ध की चिन्ता करनेवाला साधक ही सिद्धि को प्राप्त करता है। इस कारण मौन होकर बैठना चाहिए।' ___अतः मन को स्थिर करके भूखा होते हुए भी मौन करके बैठ गया। शाम के समय जब घर की रसोई बन गयी, तब सास ने कहा-"उठिए! भोजन कर लीजिए।" ___ भोजन करके वह पुनः उसी जगह पर बैठ गया। प्रहर रात्रि बीत जाने के बाद बाजार से ससुर आये। घड़ी भर उसके पास बैठकर बात-चीत की-"हे अमुक श्रेष्ठी! आपके आने का क्या प्रयोजन है?" श्रेष्ठी ने कहा-"आप से मिलने के लिए आया हूँ।" श्वसुर ने कहा-"कितने दिन तक ठहरेंगे?" श्रेष्ठी ने कहा-"नहीं। नहीं। प्रातः ही चला जाऊँगा।" उन्होंने कहा-"ऐसा है, तो दो घड़ी रात बाकी रहते ही चले जाना चाहिए, क्योंकि अभी ग्रीष्म-काल है। सूर्य के उगते ही व्यक्ति महाताप से परिभूत हो जाता है। अतः ठंडे-ठंडे समय में ही निकल जाना चाहिए।" इस प्रकार बात करके श्वसुर अपने कमरे में चले गये। गुणसार ने चिन्तन किया-"हा! मैंने स्त्री-वचनों द्वारा यहाँ आकर महत्व हार दिया है। अतः यहाँ से शीघ्र जाना ही श्रेयस्कर है।" वह रात्रि पश्चात्तापपूर्वक बिताकर दो घड़ी रात्रि शेष रहने पर उसने आवाज लगायी कि "कोई जाग रहा है क्या? मैं जाता हूँ।" इस प्रकार सामान्य वचन कहकर वह निकल गया। घर में भी जो जागता था, उसने "हाँ" कह दिया। मार्ग में गमन करते हुए जहाँ सूर्योदय हुआ, हस्त-रेखाएँ दिखने लगीं, वहीं पर ठहरकर उसने पंच-नमस्कार-पूर्वक उपवास का प्रत्याख्यान किया। चौदह नियम धारण किये। फिर जिनेश्वर के स्मरण-पूर्वक स्तोत्र आदि पढ़ता हुआ मार्ग में चलने लगा। चलते हुए पुनः नदी के तट पर साधु-दान के स्थान पर आया। वह विचारने लगा कि "यहाँ मैंने मोक्ष का कारणभूत दान सुपात्र को दिया है। पुनः ऐसा अवसर कब आयेगा?" इस प्रकार विचार करके गद्गद् होते हुए पुनः पुलकित हो गया। वहाँ आकर श्वसुर-कुल में जो अपमानादि प्राप्त हुआ था, उसे भूलकर भाव-विभोर होते हुए पुनः सोचने लगा कि मेरे समस्त गुण-घातक पातकों का नाश हुआ, जो कि मुनिराज को दान दिया। इसके लिए मैं अपनी पत्नी का ही उपकार मानता हूँ। इस
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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