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________________ धन्य-चरित्र/99 प्रतिबंध को। इस प्रकार कहकर सिर हिलाते हुए मुनि आगे बढ़ गये। वह सभी आस्थान द्वार पर स्थित उस दम्पति ने देखा। देखकर संदेह निवारण के लिए राजा ने मुनि के पास जाकर कहा-“हे मुनि! आपने जो मस्तक हिलाया, वह हमारे द्वारा मांस भक्षण की क्रिया तो परम्परा से हमारे कुल की प्रवृत्ति ही है। आप जैसे महापुरुष तो बिना कारण सिर नहीं हिला सकते, न ही आपको जुगुप्सा होती है। अतः आप कारण बताने की कृपा करें कि आपने किस कारण से सिर हिलाया है?" तब मुनि ने कहा-“राजन! जो तुमने कहा कि माँस-भक्षण तो हमारे कुल की प्रवृत्ति ही है, यह तो हम भी जानते हैं। अनादि काल से वैभाविक भाववाला यह जीव जिनवाणी के श्रवण के बिना इन्द्रियों के वशीभूत होकर सुख के लिए क्या-क्या नहीं करता? क्योंकि __आत्मभूपतिरयं सनातनः पीतमोहमदिराविमोहितः। किङ्करस्य मनसोऽपि किङ्करैरिन्द्रियैरहह! किङ्करीकृतः।। यह आत्मा सनातन काल से भूपति है, पर मोह मदिरा के पान से विमोहित होते हुए किंकर मन को भी किंकर इन्द्रियों द्वारा अहो! किंकर बना दिया गया है। संसार-विज्ञान से रहित जीव मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, योगादि से प्रेरित होकर इन्द्रिय सुख से बंधा हुआ अट्ठारह पाप स्थानों का समाचरण करता है। मार्ग के ज्ञान से रहित हठपूर्वक निकले बिना ही घूमता रहता है, उसमें क्या आश्चर्य है? और भी, जो जैसा करता है, वह वैसा ही फल प्राप्त करता है। पर कुकर्म के चिंतन-मात्र से किया हुआ कुकर्म भी, किये हुए कुकर्म से अधिक क्लेश प्राप्त कराता है। ज्ञान से यही देखकर मैंने सिर हिलाया। इसमें अन्य कोई कारण नहीं है।" मुनि के इस प्रकार कहकर चुप हो जाने पर राजा ने कहा-"आपने ज्ञान से जो देखा कि मनोरथ-मात्र से किया गया अपराध भी कृत अपराध से अधिक दुःख प्राप्त करता है, वह कौन है? किस रीति से कुकर्म के चिंतन-मात्र से अति कष्ट का अनुभव करता है? कृपा करके यह निवेदन करें, जिससे मेरे सदृश अज्ञानी का भी कुछ उपकार हो जाये।" मुनि ने कहा-“राजन! विषय-कषाय के वश में रहे हुए जीव जगत में जो कुछ नहीं देखा जाता, नहीं सुना जाता, न अनुभूत किया जाता है, उसका चिंतन करके दुर्ध्यान द्वारा नरक-निगोद रूपी महादुःख के समुद्र में गिर जाते हैं। उसमें स्वरूप से तो कुछ भी नहीं किया जाता है, पर अति विषय-कषाय
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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