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________________ धन्य - चरित्र / 95 आया। उसके साथ पाँच प्रकार के काम - भोग भोगने में प्रवृत्त हुआ । इस तरह सुखपूर्वक दोनों का काल व्यतीत होने लगा । इधर वह रूपसेन का जीव सर्पिणी के गर्भ से उत्पन्न होता होता भी आयु के योग से माता के भक्षण रूपी विघ्न से निकलता हुआ वृद्धि को प्राप्त हुआ। पृथ्वी के आहार आदि के लिए भ्रमण करता हुआ एक बार कर्मोदय के योग से राजमहल में गया । उस समय ग्रीष्मकाल होने से वह दम्पत्ति अपनी आवास वाटिका में जल - यंत्र आदि द्वारा किये गये शीतल प्रदेश में स्वेच्छा से रमण कर रहा था । नाग भी भाग्य योग से वहाँ आकर सुनन्दा को देखकर पूर्वबद्ध राग के उदय से फण रूपी छत्र को स्तम्भित करके सम्मुख बैठ गया और मस्तक धूनने लगा । सुनन्दा उसे देखकर डर गयी । चिल्लाकर भागने लगी, तो सर्प भी उसके पीछे-पीछे जाने लगा । तब सुनन्दा और भी जोर से चिल्लायी - "अरे! दौड़ो -दौड़ो | यह सर्प मुझे डसने के लिए मेरे पीछे-पीछे लग गया है ।" रानी के शब्द सुनकर सेवकों ने उस सर्प को शस्त्र से मार दिया। वहाँ से मरकर चौथे भव में काग जाति में कौए के रूप में उत्पन्न हुआ । क्रम से वृद्धि को प्राप्त होता हुआ वह कौआ नगर में परिभ्रमण करने लगा। एक बार घूमता हुआ वह कौआ राज - वाटिका में बड़े वृक्ष की शाखा पर बैठकर फल आदि खाने लगा। उसी समय राजा व सुनन्दा पुष्प आदि के झुमकों की शोभा को देखने के लिए उस वाटिका में बहुत सारे दास-दासियों से युक्त होकर चतुर्मुखी आवास में बैठकर विलास कर रहे थे। उनके मुख के सामने गायक-जन समयोचित दिव्य, मधुर तथा अनेक वाद्यों से मिश्रित ध्वनि द्वारा संगीत -गान कर रहे थे। वे दोनों गान रस में लीन होते हुए एक चित्त से सुन रहे थे। कोई भी अन्य आवाज नहीं आ रही थी । पूर्ण शांति का माहौल था । इसी अवसर पर रूपसेन का जीव रूपी कौआ उड़ता हुआ वहाँ आया । आवास के सामने के वृक्ष पर बैठकर इधर-उधर देखने लगा। तभी उसके दृष्टि पथ पर सुनन्दा आयी। पुनः पूर्व भव के राग का उदय हुआ। उस रागोदय से हर्ष को प्राप्त होता हुआ इधर-उधर उड़ता हुआ काँव-काँव करने लगा। तब उसके अशुभ नाम कर्म के उदय से जनित अति कर्कश कर्ण - कटु शब्दों के उच्चारण से वह संगीत भंग होने लगा । तब राजा ने सेवकों को कहा - "हे मूर्खजनों! इस प्रकार के समय पर भी गीत रस में विघ्न करनेवाले इस पक्षी को क्यों नहीं उड़ाते हो?” राजा के आदेश से सेवकों ने कौए को उड़ाया, फिर भी क्षण भर बाद
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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